सीताराम की पत्नी गीता दासी गाँव की रहने वाली थी। उन्होंने ने सद्गुरू जी महाराज से उपदेश लिया था। और उपदेश लेकर भक्ति कर रही थी। संत जी ने अ...

सीताराम की पत्नी गीता दासी गाँव की रहने वाली थी। उन्होंने ने सद्गुरू जी महाराज से उपदेश लिया था। और उपदेश लेकर भक्ति कर रही थी। संत जी ने अपने सत्संग में भी कहा है, कि सास को मां, समझे और ससुर को पिता ,समझे तो घर में भी क्लेश होने के चांस कम होते हैं। अगर आप सास को सास मानोगे तो आपके भाव अलग होंगे। और आप उनको मां मानकर उनकी सेवा करोगे तो आप के भाव अच्छे होंगे।और लड़ाई झगड़े भी न के बराबर होते हैं घर में।
गीता दासी जब संत कबीर जी महाराज के नाम दान केंद्र पर आई, तो उन्होंने बताया कि मेरे घर में झगड़े होते रहते हैं। सासु जी के साथ में गाली गलौच होती रहती है। और मुझे अपना नाम पुनः शुद्धि करण करवाना है। जब उनको समझाया कि गुरुजी कहते हैं- झगड़ा नहीं करना है, गाली गलौच नहीं करनी है। भगती मार्ग में सद्गुरु के आदेश का पालन करे। लेकिन घर में पति, सास ससुर का कहना मानना है ,उनकी सेवा करे।
गीता दासी को यह भी समझाया गुरु जी के ज्ञान से, कि आपकी सास की जगह अगर आपकी यह मां हो तो, क्या आप इस तरीके से उनसे लड़ाई झगड़ा गाली गलौज करती ? इस तरह से समझा ही रहे थे, कि उनकी आंखों में आंसू आ गए। और गिड़गिड़ाकर रोने लगी, गीता दासी बोली कि यह मैं जो गलती कर रही थी, आगे से कभी गलती नहीं करूंगी। क्योंकि मैं उनको सास समझ रही थी।आज से मैं उनको गुरु जी की दया से मां समझूंगी। और झगड़ा नहीं करने का प्रण लेती हूं ।
यह ज्ञान महाराज अपने भक्तों को देते हैं। उसी का नतीजा है, कि यह घर में कला क्लेश खत्म हो जाता है । नशा खोरी खत्म होती है,भक्तों को सौ सौ सुख मिलते हैं। हम समर्थ की शरण में हैं। हम बड़े भाग्यशाली हैं कई जन्मों के पुण्य के कारण सच्चे सदगुरू की शरण मिलती हैं।
काजल तो कीरकीरा लगे “सुरमा सहा न जाये “
जीन नैनन में कबीर बसे “दूजा कोन समाए “
अगर आपने गुर जी के वचन मान लिए, हृदय में धारण कर लिए, उनके आदेशों का पालन कर लिया, तो फिर सद्गुरू गुरु हमारे साथ हो लेते हैं। और हमारी पल-पल रक्षा करते हैं। और उनका आशीर्वाद हमारे साथ रहता है। जब गुरु जी का आशीर्वाद हमारे साथ रहता है। तो हमें किसी भी प्रकार का दुख कष्ट नहीं होता है, और हम आराम से घर परिवार में रहते हुए काम धंधा करते हुए हम भक्ति कर सकते हैं। तो हमें सद्गुरू गुरु जी के आदेशों का हमेशा पालन करना चाहिये।
कबीर-मनुष्य जन्म बड़े पुण्यों से होई।नाम बिना झूठा तन सोई ।
बहुत करे जप तप रे भाई,आदि नाम बिना मुक्ति नाही ।
एक सच्चे गुरू की पेहचान उस के ज्ञान से होती हैं ।
हमारी आत्मा ही कबीर है ।तत्व ज्ञान ही सद्गुरू की पहचान है ,True Spiritual Knowledge of God Kabir
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