वेद पढ़े पर भेद ना जाने,बांचे पुराण अठारा । ...
वेद पढ़े पर भेद ना जाने,बांचे पुराण अठारा ।
पत्थर की पूजा करें, भूले सिरजन हारा
भावार्थ—:वेदों व पुराणों का यथार्थ ज्ञान ना होने के कारण हिन्दू धर्म के धर्मगुरुओं को सृजनहार अर्थात् परम अक्षर ब्रह्म का ज्ञान भी नही है। इस लिये वे पत्थर पूजा में लगे हुए हैं संत गुरू के अभाव में वे वेदों को पढ़ने के बाद भी उन के सही ज्ञान से परिचित नहीं हो सके ।
पिछले पाप से,हरि चर्चा ना सुहावै ।
कै ऊँघै कै उठ चले, कै औरे बात चलावै ।
भावार्थ—:जैसे ज्वर यानि बुख़ार के कारण रोगी को भूख नहीं लगती। वैसे ही पापों के प्रभाव से व्यक्ति को परमात्मा की चर्चा में रुचि नहीं होती। या तो सत्संग में ऊँघने लगेगा या कोई अन्य चर्चा करने लगेगा। उस को श्रोता बोलने से मना करेगा तो उठ कर चला जाएगा। पृथ्वी गुण -अवगुण नहीं देखती। जिस की जैसी भावना है वह वैसा ही करता है। यह विचार करके धरती विरोध न कर सुखी रहती हैं। कि जैसे ज़मीन सहनशील है,वैसे ही भक्त-संत का स्वभाव होना चाहिये। चाहे कोई ग़लत कहे कि यह क्या कर रहे हो यानि अपमान करे , चाहे कोई सम्मान करे, अपने उद्देश्य पर दृढ़ रहकर भक्त सफलता प्राप्त करता है ।
ज्ञान के बिना मानव जीवन अधुरा है ।
( तीन प्रभु के तरफ़ इशारा )
***** ऊँ *****तत***** सत
*****ईश*****ईशवर ***** परमेश्वर
*****पुत्र *****पिता *****दादा
21 ब्रह्मांड का 7 शंख ब्रह्मांड का अशंख ब्रह्मांड का
स्वामी स्वामी स्वामी
हमारे शास्त्रों में छुपे गुढ रहस्य को जानना। तत्व दर्शी संत से सत्य भक्ति करके मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये 84 के चक्र से मुक्त हो जायेगे ।
मन बहुत ही चंचल है, लाख समझाने पर भी नहीं मानता। इस काल के लोक में केवल परमात्मा से बढ़कर सहारा देने वाला कोई नहीं है। ( यह मन कैसे धीर धरे ) परमात्मा तो जानी जान है। हमारी व्यथा को समझते हैं ,शास्त्रों अनुसार साधना से ही मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती हैं। आज पूरे विश्व में शास्त्रो का ज्ञान मंगल प्रवचन सुन कर मन ऐसा निर्मल हो जाता है। आप जी ने कभी नहीं सुना होगा। जबकि सभी ज्ञान हमारे ही सद्-ग्रन्थों में पहेले से ही विध्यमान है। जीवन रहते ही विचार करे .
हाड़ जले ज्यूँ लाकडी, केस जले ज्यूँ घास।
कंचन जैसी काया जल गई, कोई न आयो पास ।
जगत में कैसा ........नाता रे .........
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