विचार और व्यवहार - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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विचार और व्यवहार

                        शरण पड़े को गुरू सँभाले ,जान के बालक बोरा रे ,                         कहे कबीर चरण चीत राखो ,ज्यों सुई मैं डोरा रे ...



                        शरण पड़े को गुरू सँभाले ,जान के बालक बोरा रे ,
                        कहे कबीर चरण चीत राखो ,ज्यों सुई मैं डोरा रे ।
                          ज्ञान का भंडार - मालिक,परमात्मा ।

परमात्मा जी ने धर्मदास जी को बताया कि मैं अपनी प्यारी आत्माओं को काल के जाल से निकालने के लिए काल के इन 21 ब्रह्मांडों में घूमता रहता हूँ। और सत्य ज्ञान देकर वशास्त्रानुकूल साधना बताकर पार करता हूं।

परमात्मा सब जीवों पर अपना नेह (प्यार) बरसाता है। हम उन्हीं की सन्तान है। वह हमें दुःखी नहीं देखना चाहता। हाथी से लेकर चींटी सब जीव जातियों में मानव पूर्ण परमात्मा जी की आत्मायें हैं। बस सब हिसाब किताब कर्मो का ही खेल है जैसे कर्म करेंगे बैसा ही फल मिलेगा , तत्व ज्ञान को पढ़ कर बड़ी ख़ुशी मिलती है। लाइफ़ में पहली बार ऐसा निर्मल ज्ञान सुना और पढ़ा, यह सब परमात्मा  की कृपा का प्रसाद हैं। जो मुझे नसीब हुआ बड़े सौभाग्य की बात है। विचार और व्यवहार हमारे बगीचे के दो फूल हैं। जो हमारे पूरे व्यक्तित्व को महका देते हैं।

मालिक जी के सानिध्य में रहने का सुप्रवाह बना रहता है। 13 वा वंश ये दास हैं, हमारे मालिक परमात्मा जी के वंश की अभी स्थापना हुई है। यदि अब भी नहीं बदले तो कब बदलोगे ? हमारे आहों भाग्य विश्व की पूरी कायनात को बहुत खूबसूरत बनाया है। किसी को अच्छी सूरत देकर और किसी को अच्छा दिल देकर। 

   विश्व—वृक्ष का ( कबीर ) मूल हैं ।उस को तू प्राणी कभी न भूलना। साँस २ से सिमरू मालिक तेरा नाम ।

हे प्राणी तू इस तथ्य को ( सत्य ) जानना, कभी न भूलना, अत: हे बुद्धि जीव तू प्रत्येक श्वास के साथ उस महान पिता जी का सिमरन कर के जीवन रूपी नैया को सही मार्ग पर ले चल। मैं नादान हूँ, मैं अज्ञानी हूँ, ना समझ हूँ, जो गलती हो, उसके लिए क्षमापार्थी हूँ। मेरा मार्ग दर्शन तुम्हीं से हैं।
                                 

सत्संग की आधी घडी तप के वर्ष हज़ार ,फिर भी बराबर हैं नही कह कबीर बिचार।
 राम बुलावा भेजिया दिया कबीरा रोये ,तो जो सुख हैं सत्संग मे वो स्वर्ग मे भी ना होय ।
 संत दशा तो साध हैं ,सरोवर है सत्संग ,मुक्ता हल वाणी चुगे चढ़त नवेला रंग ।
 कबीर ज्ञान अटपटा झटपट समझ में न आये जो ज्ञान समझ मे आये तो खटबट मिट जाये ।
 कबीर लहर समुद्र की मोती  बिखरे आये ,बगुला परख न जानहि हंसा चुग युग खाये ।
                                    कहता हूँ कही जात हूँ कहूँ बजाकर ढोल ,स्वाँस  ख़ाली जात है तीन लोक का मोल ।
                                    ऐसे महँगे मोल का एक स्वाँस जो जाये।अब का पासा ना पड़े फिर लाख चौरासी जाये ।
मालिक अपनी कृपा बनाए रखना मुझे पूर्ण विश्वास है। विश्व सत्य पर ही टिका हुआ है। आप जी से ज़्यादा कौन जान 
सकता हैं।सारीं यानि पूर्ण सृष्टि की रचना ,उत्पत्ति ,करने वाले स्वयं आप हो ,हमारे बीच आप जी के मुखारविंद से तत्व ज्ञान सुनकर मन को बड़ी राहत मिलती है ।शब्द रूपी नाम की कमाई कर के अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये ।
शेषकल:-








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