कर्मो का हिसाब किताब - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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कर्मो का हिसाब किताब

ईश्वर का न्याय हैं कि जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे   एक दिन एक महात्मा अपने शिष्य के साथ भ्रमण के लिए निकले. गुरु जी को इधर उधर की बातें...



ईश्वर का न्याय हैं कि जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल पाओगे
 
एक दिन एक महात्मा अपने शिष्य के साथ भ्रमण के लिए निकले. गुरु जी को इधर उधर की बातें बिल्कुल भी पसंद न थीं. वह शांत स्वभाव के थे. अपना कर्म करना ही गुरु को प्रिय था. परन्तु शिष्य बहुत बातूनी था . हर समय कुछ न कुछ बोलता रहता. चलते हुए जब वो तलाब से गुजरे तब उन्होंने देखा कि एक धीवर ( मछुआरा) नदी में जाल डाला हुआ हैं. शिष्य यह देख कर वही खड़ा हो गया और धीवर को अहिंसा ,परमोधर्म का उपदेश देने लगा ,लेकिन धीवर को इसमे कोई रुचि नहीं थी. बातों ही बातों में दोनो का झगड़ा शुरू हों गया.

गुरु जी ने शिष्या का हाथ पकड़ा और अपने साथ लेकर चलने लगे और शिष्य को कहा कि हमारा काम है लोगों को समझाना न कि उन्हें दण्ड देना. शिष्य ने कहा - हमारे राज्य के महाराजा को दण्ड के बारे में पता ही नहीं वह कुछ लोगों को दण्ड ही नहीं देते. गुरु जी ने कहा बेटा तुम निश्चिंत रहो ईश्वर की दृष्टि सब पर है और वह सब को देख रहा हैं. तुम्हें इस झगड़े में नहीं पड़ना चाहिए .शिष्य गुरू जी की बात सुन कर संतुष्ट हो गया।

2 वर्ष बाद वही गुरु और शिष्य उसी तलाब के निकट से निकले. शिष्य दो वर्ष पहले वाली बात( घटना) को भूल चुका था. उसने क्या देखा कि एक घायल साँप को हज़ारों चींटियाँ खा रही है और उसका दिल पिघल गया .वह उसकी मदद के लिए आगे बढ़ा तो गुरु जी ने उसे रोक दिया और कहा कि इसे अपने कर्मों का फल भोगने दो ,अगर तुमने इसकी मदद की तो इस बेचारे को फिर से दूसरे जनम में यह दुःख भोगने पड़ेंगे. शिष्य ने पूछा कि गुरु जी इसने ऐसा कौन सा कर्म किया हैं. जो यह इस दुर्दशा में फँसा हैं.

गुरु जी ने कहाँ -जो साँप हैं वह वहीं धीवर है , और जो चिटियाँ हैं वो मछलियाँ है पहलें जन्म में धीवर , मछलियों को मार कर खाता था तो आज उसके विपरीत हो रहा है , कहा जाता कि कर्मों का फल भुगताना ही पड़ता हैं. वो चाहे इस जनम में , या अगले जनम में. इसलिए कहा जाता है कि ज़ैसा क़रोगे वैसा ही भरोगे. शिष्य बोला क्या हमें किसी दुःखी इंसान की सेवा नहीं करनी चाहिए. गुरु जी ने कहा अवश्य करनी चाहिये. यहाँ पर तो मैंने इसलिए तूझे रोका क्योंकि मुझे पता हैं  कि वह किस कर्म को भुगत रहा हैं , यहाँ मदद करना पाप था. शिष्यपुरी तरह से समझ चुका था. ईश्वर हमेशा सही न्याय करते हैं और उनके न्याय करने का सीधा सम्बंध हमारे कर्मों से हैं.

यह जीवन इस लिए मिला है ताकि हम कुछ ऐसे काम (कर्म) करे. जिसको देख कर ईश्वर की आँखो में भी हमारे प्रति प्रेम छलक उठे। हमें अपने सद्गुरू की आज्ञा का पालन करना चाहिए .

शेष कल -

1 comment

Unknown said...

Hi friends kya baat hai ap kitna achha likhty hai really amazing woow ❤️❤️❤️❤️❤️
Great mam 😊😊😊🤠🤩🤠