दूसरा नाम( सतनाम) का महत्व त्रिकुटी मे आगे चलकर तीन रास्ते हो जाते है जिसे त्रिवेणी बोलते है.. वहा काल के पुजारी दायं बाय चले जाते है.. लेक...
दूसरा नाम( सतनाम) का महत्व
त्रिकुटी मे आगे चलकर तीन रास्ते हो जाते है जिसे त्रिवेणी बोलते है.. वहा काल के पुजारी दायं बाय चले जाते है.. लेकिन सामने जो रास्ता होता है उसको ब्रह्मरंद(बज्रकपाट) बोलते है.. वह अमरलोक जाने का रास्ता है परमात्मा कहते है शिव ने भी 97 बार try किया था।
ऐसे बहुत अनेक ब्रह्मरंद के बज्रकपाट को सतनाम के दो अक्षर खोलते है। तब हम दसवे द्वार मे आगे सहस्त्र कमल मे प्रवेश करते है.. (यहा जहा पर काल अपने भयानक वास्तविक रूप मे बैठा है) आगे बहुत भयानक आवाजे आती है डाकनी शाकनी बहुत सारी मिलती है.. सतनाम के मंत्र को सुनकर सब भाग जाते है. (सतनाम मे इतनी पावर है अगर 12 करोड यम के दूत और साथ मे आगे चलकर काल अपने वास्तविक रूप मे बैठा नजर आता है लेकिन गुरू रूप मे परमात्मा साथ होते है.. तब हमे तीनो मंत्रो का जाप एक साथ करना होता है।
तीसरे नाम (सारनाम) का महत्व ।
(सतनाम के बाद जब हम तीसरा सारनाम गुरू जी से लेते है तो गुरू जी सतनाम के दो अक्षरमे ही सारनाम का एक अक्षर एड कर देते है ऐसे ब्रह्म परब्रह्म पूर्ण ब्रह्म तीनो का जाप एक साथ करना होता है.. जाप विधि गुरू जी बताते है ओम- तत- सत ये पूर्ण परमात्मा का मंत्र (नाम) कहा है ओम सीधा ही है तत सत कोड वर्ड है यह सत गुरू महाराज जी से ही प्राप्त कर सकते हैं फिर इन तीनो मंत्र का एक साथ जाप करना होता है सतनाम और सारनाम एक नाम बन जाता हैं ।
जब हम दसवे द्वार के last मे जाते है तो वहा काल वास्तविक रूप मे बैठा है.. वहाँ हम जब इन तीनो मंत्रो (सतनाम और सारनाम) का जाप एक साथ करते है तो काल निरंजन सर झुका देता है ,ओम मंत्र ब्रह्म का है इसकी कमाई करके हमे आगे आठवे कमल ग्यारहवे द्वार मे जाने की अनुमति दे देता है. इसके सर के पीछे ग्यारहवा द्वार है. जब काल सर झुकाता है तो हम इसके सर पर पैर रख कर ग्यारहवे द्वार परब्रह्म के लोक आठवे कमल मे प्रवेश कर जाते है वहा हमारा सूक्ष्म शरीर छुट जाता है हमारे पास तत और सत मंत्र की कमाई शेष रह जाती है। मालिक अपने बच्चों के हर अन्तर् आत्मायों को जानते हैं। उन से कुछ भी छुपा नहीं है हम अज्ञानी है ,नादान हैं ,हमारी सब बुराइयों को दूर कर के सत लोक ले जाने के लिये स्वयं कितना बड़ा निर्णय लिया है।
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