इंडिया की यात्रा- 9 - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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इंडिया की यात्रा- 9

बाहर आने से पहले मेरे मम्मी पापा जी मुझे कई जगह लेकर गये दर्शनों के लिये हरिद्वार ,चिन्तपुरनी ,मनसा देवी मंदिर देख कर मन अति प्रसन्न हुआ लोग...




बाहर आने से पहले मेरे मम्मी पापा जी मुझे कई जगह लेकर गये दर्शनों के लिये हरिद्वार ,चिन्तपुरनी ,मनसा देवी मंदिर देख कर मन अति प्रसन्न हुआ लोगों की भीड़ इतनी थी लम्बी लम्बी कितारे लगी हुई थी। लोगों की श्रद्धा देखकर मन और भी खुश हुआ। यह दुनिया सत्य के भरोसे खड़ी हुई हैं। बगलामुखी मंदिर देखने में और भी ख़ुशी हुई सब से अलग दिखने में है साथ ही शिवजी का मंदिर है लाइफ़ में पहली बार देखा उसे ज्योतिर्लिंग बड़ा बिशाल अति सुंदर वहाँ पर रावण के पुत्रों ने हवन किया था वो जगह आज भी मौजूद हैं। देखने लायक़ हैं। पुरानी से पुरानी वरासत को आज भी लोगों ने सम्भाल के रखा हुआ हैं। बाहर के लोगों के लिए रहने की ख़ास व्यवस्था की गई हैं। वहाँ बहुत ही हरियाली थी नैचूरल नजारा देखने लायक़ था। सब से ज़्यादा समूह बन्दरों का झुंड के झुंड आपस में खेल रहे थे। जब भी कोई यात्री वहाँ से गुजरता तो भूने हुए चने ,खिलाता तो कोई केले,तो कोई गुड़,खूब बन्दरों की और जनता की भीड़ लगी रहती हैं ।

ऐसे ही मन्दिरों में यहाँ भीलनी रहती थी। वहाँ की छोटी सी वार्तालाप—:कहो राम ,शबरी की कुटिया को ढूँढने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ ? राम मुस्कुराये —:यहाँ तो आना ही था माँ,कष्ट का क्या  मोल ? शबरी की आँखों में जल भर आया था। उस ने बात बदल कर कहा —:बेर खाओगे राम ? राम मुसकुराये बिना खाये जाऊँगा भी नहीं माँ शबरी अपनी कुटिया से झँपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया। राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा—:बेर मीठे है प्रभु ? यहाँ आकर मीठे और खट्टे का,भेद भूल गया हूँ माँ ।बस इतना समझ रहा हूँ,कि यही अमृत हैं ।शबरी मुस्कुराई ,बोली—:सचमुच तुम मर्यादा पुररूषोतम हो राम अति उत्तम और परिपूर्ण हो राम सच मे पूर्ण यूनिवर्सल के मालिक हो आप जी का पार पाना तुच्छ जीव के बस की बात नहीं। सब के दिलों में बिराजमान हो (हे राम) मुझे बहुत ही अच्छा लगा मैंने मम्मी पापा के साथ यात्रा की बहुत कुछ सिखने देखने को मिला बहुत यादें अपने साथ ले जाऊँगी समय बहुत कम है फिर कब अन्नजल हो पता नहीं ।

  शेष कल-



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