नीमा :— सिर से पाँव तक काँप जाती है ,आज तुझे फिर किसी ने डंडे मारे हैं ? कबीर : —कुछ भी नहीं हुआ, माँ मैं तो इसे भूल भी चुका था। नीमा भागकर ...
कबीर : —कुछ भी नहीं हुआ, माँ मैं तो इसे भूल भी चुका था।
नीमा भागकर अन्दर जाती है, और अन्दर से हल्दी-तेल की कटोरी उठा लाती है। बेटे ,उतार दे अपना कुर्ता माँ,कबीर का कुर्ता उतार कर उसकी पीठ पर तेल लगाती हैं।
नीमा : —तू यह क्या करता फिरता है, कबीरा, मेरा दिल दहल जाता है। जिन लोगों के हाथ में ताक़त होती है, उन लोगों के दिल में रहम नहीं होता, बेटा । तू अपनी औक़ात देख। तू मेरी बात मान बेटा, तू सुनकर अनसुनी कर जाया कर, पर मुँह से कुछ न बोला कर…... माँ,क्या आप को बहुत दर्द हो रहा है ?कबीर : —कुछ भी तो नहीं माँ, तू यों ही चिन्ता करने लगती है। मैं तो भूल भी चुका था।नीमा : —चल, लेट जा, इधर मैं (खटिया ) यानि चारपाई बिछा देती हूँ।खाट बिछा देती है, कबीर खाट पर बैठ जाता है।
कबीर : —मेरे मन में कोई सवाल उठे तो मैं पूछूँगा भी नहीं ? मेरे मन में तरह-तरह के सवाल उठते रहते हैं, माँ, मैं क्या करूँ ?
नीमा : —बड़े-बड़े मुल्ला-मौलवी, पंडित- शास्त्री ,सवाल पूछने के लिए बैठे हैं, बेटा, तू न पढ़ा ,न लिखा, तू अपना काम देख, तुझे सवालों से क्या लेन- देने की पड़ी है ?
कबीर : —कहती तो ठीक हो माँ, पर मन में सवाल उठते ही रहते हैं। और जब उनका जवाब नहीं मिलता तो मन बेचैन हो जाता है।
नीमा : —तेरी सारी पीठ छलनी हो रही है, बेटा, किस हत्यारे ने तुझे कोड़े लगाए हैं
? तेरे पर अत्याचार किये तुमने उफ़ तक नहीं की मन बहुत दुखी होता हैं ।
कबीर : —अब तो पीठ मज़बूत हो गई है, माँ, अब बहुत महसूस नहीं होता माँ ।
नीमा : सुन कबीरा, अगर कोई तुझ से तेरी जात-पात पूछे तो निधड़क कह दिया कर कि मैं बामनी का बेटा हूँ। यह सच भी तो है न, झूठ तो नहीं है।
कबीर :— हँसकर कोई हिन्दू पूछेगा तो ,कहूँगा ब्राह्मणी का बेटा हूँ, कोई तुर्क पूछेगा तो कहूँगा, नीमा मुसलमानिन का बेटा हूँ। यही न ? इसमें हिन्दू भी कोड़े नहीं मारेंगे ,और तुर्क भी कोड़े नहीं मारेंगे। तू भी यही चाहती है न माँ ?नीमा : —मैं क्या जानूँ, बेटा, तूने दोनों से दुश्मनी मोल ले रखी है।थोड़ा रुक कर एक बात कहूँ, कबीरा ? कबीर : क्या माँ ?
सद्गुरु—:प्रेम छुपाये ना छुपे ,जा घट प्रकट हो ,
कबीर : —अब तो पीठ मज़बूत हो गई है, माँ, अब बहुत महसूस नहीं होता माँ ।
नीमा : सुन कबीरा, अगर कोई तुझ से तेरी जात-पात पूछे तो निधड़क कह दिया कर कि मैं बामनी का बेटा हूँ। यह सच भी तो है न, झूठ तो नहीं है।
कबीर :— हँसकर कोई हिन्दू पूछेगा तो ,कहूँगा ब्राह्मणी का बेटा हूँ, कोई तुर्क पूछेगा तो कहूँगा, नीमा मुसलमानिन का बेटा हूँ। यही न ? इसमें हिन्दू भी कोड़े नहीं मारेंगे ,और तुर्क भी कोड़े नहीं मारेंगे। तू भी यही चाहती है न माँ ?नीमा : —मैं क्या जानूँ, बेटा, तूने दोनों से दुश्मनी मोल ले रखी है।थोड़ा रुक कर एक बात कहूँ, कबीरा ? कबीर : क्या माँ ?
नीमा : —तू चाहे यहाँ से चला जा,और किसी जगह जाकर बस जा ,चाहे हमें छोड़कर चला जा, लेकिन अपनी दुरगत न करा, लोगों ने कबीर जी ,महाराज को इतना शुद्ध (यानि) सत्य ज्ञान,(सच्चाई का असली ज्ञान),को उजागर होने नहीं दिया ,यह मूर्ख दुनियाँ से आज तक कोई जीत नहीं सका ,कितनी बड़ी विडम्बना है ।मरने के बाद मानना शुरू कर देते हैं (जैसे) गरूड़ प्राण मरने से पहले पड़ना चाहिए ।मूर्ख लोग मरने के बाद पडतें हैं, इस काल लोक में सत्य को जानते हुए भी मानने को तैयार नहीं ।भगवान स्वयं चारों युगों में आते हैं ।अपना ज्ञान दे कर अपनी अच्छी आत्मा को साथ लेकर जायेगे ।अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाने के लिये गुरू आज्ञा का पालन करें ।
साध संगति हरि भक्ति विन, कोई ना उतरे पार ,
निर्मल आदि अनादि हैं, गंदा सब संसार ।
सद्गुरु—:प्रेम छुपाये ना छुपे ,जा घट प्रकट हो ,
मुख से तो बोले नहीं नैन देत रोय ।
कबीर मन मलीन हैं, धोयें ना छूटे रंग ।
कबीर मन मलीन हैं, धोयें ना छूटे रंग ।
कै छूटे हरि भक्ति से,कै साधूँ सत्संग ।
कबिरा खड़ा बाज़ार में' सब की माँगें ख़ैर का …………
शेष कल —:
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