वैश्य का मज़ाक - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News:

latest

वैश्य का मज़ाक

एक समय की बात है ,नरंगपूर गाँव में एक महात्मा जी रहा करते थे ।महात्मा जी का एक अति प्रिय शिष्य बहुत भोला और साफ़ दिल का था। साधारण परिवार से...

एक समय की बात है ,नरंगपूर गाँव में एक महात्मा जी रहा करते थे ।महात्मा जी का एक अति प्रिय शिष्य बहुत भोला और साफ़ दिल का था। साधारण परिवार से आया था ।जब भी वह बाज़ार में जाता, तो एक वेश्या उस का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए उस से मज़ाक किया करती। उस को सताने की कोशिश करती, वह बेचारा दूसरी ओर ध्यान कर लेता। ज्यों-ज्यों वे ध्यान को हटाता, वह वेश्या उसे और ज्यादा छेड़ती और सताती ।महात्मा जी के आश्रम में एक दिन आग बुझ गई। अचानक से आग की जरूरत पड़ गई, अब आग कहाँ से लाएँ महात्मा ने अपने उस शिष्य से कहा कि आग चाहिए, कही से ढूढ़ कर आग लाओ।
पुराने ज़माने में,उस समय में लोग अंगारों को राख में दबा कर रखते थे, और जब आग की ज़रूरत पड़ती थी, तो अंगारों को निकाल कर काम में लेते थे। वह आग की तलाश में निकल पड़ा, और घर घर जा कर आग ढूंढने लगा। उसने हर गली ,और मुहल्ले में पूछा, बहुत घूमा लेकिन आग कहीं नहीं मिली। फिर वह बाज़ार में गया, देखा कि वह वेश्या हुक़्क़ा पी रही है। अब सोचता है कि, यह तो मुझे पहले से ही परेशान करती है, पर गुरू जी का आदेश है, तो वह मन मार कर ऊपर मकान पर चढ़ गया। वेश्या ने उसे देख कर पूछा कि आज क्या बात है ? वह बोला, माई जी,मुझे आज आग चाहिए। वह मज़ाक के साथ कहने लगी ,कि आग की कीमत तो आँख है। वह कहने लगा अच्छा आग की कीमत एक आँख है।
उसने उसी समय आँख में अँगुली डाली और आँख निकाल कर उस के सामने रख दी। वेश्या यह देख कर डर गयी ,और जल्दी से उसे आग दे दी। वह मन में सोचने लगी, कि मैंने तो मज़ाक में कहा था। लेकिन इस ने तो वास्तव में ही अपनी आंख निकाल कर मुझे दे दी है। उसे अपनी इस बात पर बहुत पछतावा हुआ। मन ही मन में सोचने लगी ,यह मैंने क्या कह डाला ।वह शिष्य आग ले कर आँख पर वह पट्टी बाँध कर महात्मा जी के सामने आया। महात्मा जी ने उससे पूछा, आग ले आये क्या ? उसने जवाब दिया, हाँ जी ले आया हूँ। महात्मा जी ने कहाँ कि यह आँख पर पट्टी क्यों बाँधी है ? बोला आँख आयी हुई है, दु:ख रही है। उन्होंने कहाँ अगर ऑंख आयी हुई है। तो पट्टी क्यों बांधी है,पट्टी खोलो। जब पट्टी खोली तो आँख पहले की तरह बिल्कुल सही थी।
महात्मा जी ने उसकी आँख ठीक कर दी। भगवान हमेशा अपने भक्त्तों की हर बात को  मानता है।लेकिन भक्त्त का भी धर्म है ,कि गुरू जी के आदेश का पालन करे। एक शिष्य गुरु जी से प्रश्न पूछता है :—अगर हमें ऐसा लगे ,कि हमने गुरु जी को नाराज कर दिया है, तो क्या उस गलती को सुधारने का कोई तरीका है ? गुरु ने जवाब दिया : —सब से पहले तो मैं आपको इस बात का विश्वास दिला दूं ,कि हम कभी उसे नाराज नहीं करते। हम किसी व्यक्ति को तभी नाराज़ कर सकते हैं। जब हम कुछ ऐसा कर देते हैं, जिस की उस ने हम से कभी आशा न की हो। जब वह जानता है, कि हम कितने बेबस हैं। मन के कितने अधीन हैं। हर कदम पर ठोकर खाते हैं, तो हमारे बारे में यह सब उस के लिए नया नहीं है। 
वह तो हमें पहले से ही जानता है। हम किस मिट्टी के बनें हैं ।इसलिए एक महात्मा ने कहा था, अगर तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करते। मेरे बताए उपदेश पर नहीं चलते, तो मैं तुम्हें परमात्मा के सामने दोषी नहीं ठहराऊंगा क्योंकि हम तो पहले से ही सजा भुगत रहे हैं। परमात्मा से बिछड़ने का, और इस रचना का हिस्सा बने रहने से बड़ी सजा हमारे लिए और क्या हो सकती है ? इस लिए गुरु जी के नाराज होने का तो सवाल ही नहीं उठता। लेकिन गुरु जी के बताए नियमों के अनुसार जीवन बिता कर भजन बंदगी को पूरा वक्त दे ,शब्द रूपी नाम की कमाई कर सकें  हम उस मालिक जी को खुश जरूर कर सकते हैं। ऐसा करने से वह जरूर खुश होंगे  सतगुरु देव की सदैव कृपा बनीं रहें ।अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें ।परम पिता ,परमेश्वर ,हमें सुबुद्धि दे ।ताकि अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें बुराइयों को दूर करनें में सफलता हासिल कर सकें ।
शेषकल—: 

No comments