एक समय की बात है ,नरंगपूर गाँव में एक महात्मा जी रहा करते थे ।महात्मा जी का एक अति प्रिय शिष्य बहुत भोला और साफ़ दिल का था। साधारण परिवार से...
उसने उसी समय आँख में अँगुली डाली और आँख निकाल कर उस के सामने रख दी। वेश्या यह देख कर डर गयी ,और जल्दी से उसे आग दे दी। वह मन में सोचने लगी, कि मैंने तो मज़ाक में कहा था। लेकिन इस ने तो वास्तव में ही अपनी आंख निकाल कर मुझे दे दी है। उसे अपनी इस बात पर बहुत पछतावा हुआ। मन ही मन में सोचने लगी ,यह मैंने क्या कह डाला ।वह शिष्य आग ले कर आँख पर वह पट्टी बाँध कर महात्मा जी के सामने आया। महात्मा जी ने उससे पूछा, आग ले आये क्या ? उसने जवाब दिया, हाँ जी ले आया हूँ। महात्मा जी ने कहाँ कि यह आँख पर पट्टी क्यों बाँधी है ? बोला आँख आयी हुई है, दु:ख रही है। उन्होंने कहाँ अगर ऑंख आयी हुई है। तो पट्टी क्यों बांधी है,पट्टी खोलो। जब पट्टी खोली तो आँख पहले की तरह बिल्कुल सही थी।महात्मा जी ने उसकी आँख ठीक कर दी। भगवान हमेशा अपने भक्त्तों की हर बात को मानता है।लेकिन भक्त्त का भी धर्म है ,कि गुरू जी के आदेश का पालन करे। एक शिष्य गुरु जी से प्रश्न पूछता है :—अगर हमें ऐसा लगे ,कि हमने गुरु जी को नाराज कर दिया है, तो क्या उस गलती को सुधारने का कोई तरीका है ? गुरु ने जवाब दिया : —सब से पहले तो मैं आपको इस बात का विश्वास दिला दूं ,कि हम कभी उसे नाराज नहीं करते। हम किसी व्यक्ति को तभी नाराज़ कर सकते हैं। जब हम कुछ ऐसा कर देते हैं, जिस की उस ने हम से कभी आशा न की हो। जब वह जानता है, कि हम कितने बेबस हैं। मन के कितने अधीन हैं। हर कदम पर ठोकर खाते हैं, तो हमारे बारे में यह सब उस के लिए नया नहीं है।
वह तो हमें पहले से ही जानता है। हम किस मिट्टी के बनें हैं ।इसलिए एक महात्मा ने कहा था, अगर तुम मेरी आज्ञा का पालन नहीं करते। मेरे बताए उपदेश पर नहीं चलते, तो मैं तुम्हें परमात्मा के सामने दोषी नहीं ठहराऊंगा क्योंकि हम तो पहले से ही सजा भुगत रहे हैं। परमात्मा से बिछड़ने का, और इस रचना का हिस्सा बने रहने से बड़ी सजा हमारे लिए और क्या हो सकती है ? इस लिए गुरु जी के नाराज होने का तो सवाल ही नहीं उठता। लेकिन गुरु जी के बताए नियमों के अनुसार जीवन बिता कर भजन बंदगी को पूरा वक्त दे ,शब्द रूपी नाम की कमाई कर सकें हम उस मालिक जी को खुश जरूर कर सकते हैं। ऐसा करने से वह जरूर खुश होंगे सतगुरु देव की सदैव कृपा बनीं रहें ।अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें ।परम पिता ,परमेश्वर ,हमें सुबुद्धि दे ।ताकि अपनी जीवन यात्रा को सफल बनायें बुराइयों को दूर करनें में सफलता हासिल कर सकें ।
शेषकल—:
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