एक बार की बात है , संत तुका राम अपने आश्रम में बैठे हुए थे। तभी उनका एक शिष्य जो स्वाभाव से थोड़ा क्रोधी था ,उनके समक्ष आया ,और बोला -गुरूजी ...
उस समय से शिष्य का स्वभाव बिलकुल बदल सा गया। वह हर किसी से प्रेम से मिलता और कभी किसी पे क्रोध न करता, अपना ज्यादातर समय ध्यान और पूजा में लगाता। वह उनके पास भी जाता जिससे उसने कभी गलत व्यवहार किया था और उनसे माफ़ी मांगता। देखते-देखते संत की भविष्य वाणी को एक हफ्ते पूरे होने को आये। शिष्य ने सोचा चलो ,एक आखिरी बार गुरु के दर्शन कर आशीर्वाद ले लेते हैं। वह उनके समक्ष पहुंचा और बोला-
गुरुजी, मेरा समय पूरा होने वाला है,कृपया मुझे आशीर्वाद दीजिये मेरा आशीर्वाद हमेशा तुम्हारे साथ है पुत्र। अच्छा,ये बताओ कि पिछले सात दिन कैसे बीते ? क्या तुम पहले की तरह ही लोगों से नाराज हुए,उन्हें अपशब्द कहे ? संत तुकाराम ने प्रश्न किया ,नहीं-नहीं,बिलकुल नहीं। मेरे पास जीने के लिए सिर्फ सात दिन थे,मैं इसे बेकार की बातों में कैसे गँवा सकता था ? मैं तो सबसे प्रेम से मिला और जिन लोगों का कभी दिल दुखाया था ,उनसे क्षमा भी मांगी।शिष्य तत्परता से बोला,
संत तुकाराम मुस्कुराए और बोले - बस यही तो मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है।मैं जानता हूँ ।कि मैं कभी भी मर सकता हूँ, इसलिए मैं हर किसी से प्रेमपूर्ण व्यवहार करता हूँ, और यही मेरे अच्छे व्यवहार का रहस्य है। शिष्य समझ गया कि संत तुकाराम ने उसे जीवन का यह पाठ पढ़ाने के लिए ही मृत्यु का भय दिखाया था।
निष्कर्ष यानि भावार्थ—:
वास्तव में हमारे पास भी सात दिन ही बचें हैं - रवि,सोम,मंगल,बुध,गुरु,शुक्र और शनि।आठवां दिन तो बना ही नहीं है ।आइये ,आज से ही परिवर्तन आरम्भ करें..।हम बदलेंगे,युग बदलेगा।यहीं ज़िन्दगी जीने का मूल मंत्र है ।परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में अपने पाने यानि जीव को मोक्ष दिलाने की विधि स्वयं बताने के लिए प्रकट होते हैं। वे बता रहे हैं ,कि परमात्मा की भक्ति बहुत नाजुक है। बड़ी सावधानी से साथ करना चाहिए। यदि परमात्मा भक्ति के लिए सिर भी देना पड़े तो चूकना नहीं चाहिए। यह सिर अथार्त् मानव शरीर तथा उसका अंग सिर परमात्मा का प्रदान किया हुआ है। यदि भक्ति मार्ग में सिर देने से चूक गए तो बहुत बड़ी भूल होगी। काल ब्रह्म कभी भी यह शरीर नष्ट करा देगा। दुघर्टना, रोग, जल में डूबने से, अग्नि लगने से कभी भी यह शरीर नष्ट हो सकता है। यदि परमात्मा प्राप्ति के लिए जीवन समपिर्त करना पड़े ,तो सौभाग्य जानें और पीछे मुड़कर न देखें। परमात्मा प्राप्ति के लिए जीवित मरना अनिवार्य है ।ठीक का समय अब हो चुका हैं ।कैसे अपनी सोच को बदलें ताकि अपनी जीवन यात्रा को सफल बना सकें ।
निष्कर्ष यानि भावार्थ—:
वास्तव में हमारे पास भी सात दिन ही बचें हैं - रवि,सोम,मंगल,बुध,गुरु,शुक्र और शनि।आठवां दिन तो बना ही नहीं है ।आइये ,आज से ही परिवर्तन आरम्भ करें..।हम बदलेंगे,युग बदलेगा।यहीं ज़िन्दगी जीने का मूल मंत्र है ।परमेश्वर कबीर जी सतगुरू रूप में अपने पाने यानि जीव को मोक्ष दिलाने की विधि स्वयं बताने के लिए प्रकट होते हैं। वे बता रहे हैं ,कि परमात्मा की भक्ति बहुत नाजुक है। बड़ी सावधानी से साथ करना चाहिए। यदि परमात्मा भक्ति के लिए सिर भी देना पड़े तो चूकना नहीं चाहिए। यह सिर अथार्त् मानव शरीर तथा उसका अंग सिर परमात्मा का प्रदान किया हुआ है। यदि भक्ति मार्ग में सिर देने से चूक गए तो बहुत बड़ी भूल होगी। काल ब्रह्म कभी भी यह शरीर नष्ट करा देगा। दुघर्टना, रोग, जल में डूबने से, अग्नि लगने से कभी भी यह शरीर नष्ट हो सकता है। यदि परमात्मा प्राप्ति के लिए जीवन समपिर्त करना पड़े ,तो सौभाग्य जानें और पीछे मुड़कर न देखें। परमात्मा प्राप्ति के लिए जीवित मरना अनिवार्य है ।ठीक का समय अब हो चुका हैं ।कैसे अपनी सोच को बदलें ताकि अपनी जीवन यात्रा को सफल बना सकें ।
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