मैं रोवत हूं सृष्टि को ,ये सृष्टि रोवे मोहे । गरीबदास इस वियोग को, समझ न सकता कोये। भावार्थ—: इस वाणी में संत गरीबदास जी कह रहे हैं ,कि कबी...
गरीबदास इस वियोग को, समझ न सकता कोये।
भावार्थ—:
इस वाणी में संत गरीबदास जी कह रहे हैं ,कि कबीर परमेश्वर जी ने कहा- हे गरीब दास ,मैं दुनिया के लिए रोता हूं ,कि तुम सब मेरे बच्चे हो। मैं तुम्हारा बाप हूँ। आप यहाँ इस बुरे काल लोक में अपनी गलती के कारण आए हैं। काल तुम्हारा दुरुपयोग कर रहा है। आप यहाँ पीड़ित हैं। आप मेरे कहे अनुसार पूजा करें। और अपने मूल स्थान सतलोक में चले जाएं, वहां कोई दुख नहीं है।और, यह दुनिया मेरे लिए रोती है ,कि हे भगवान ,आप सर्व शक्तिमान, निर्माता, सभी के पालनहार हैं। कृपया हमें खुशी दें। कृपया हमारे कष्टों को दूर करें। हम आपकी भक्ति, पूजा करते हैं।आप हमें दर्शन क्यों नहीं दे रहे हैं ?
लेकिन, जब मैं उनके पास जाता हूं ,और उन्हें बताता हूं ,कि मैं भगवान हूं। फिर ईश्वर निराकार होने के इस निराधार विश्वास पर दृढ़ होकर मुझ पर विश्वास नहीं करते। इस काल ने हमारे बीच अज्ञानता की दीवार खींच दी है। इस अलगाव को कोई नहीं समझ सकता। इस अलगाव को समझने के लिए एक तीसरी इकाई की जरूरत थी। वह तीसरी इकाई है सतगुरु, जो ईश्वर को अपनी आत्माओं से जोड़ता है। मालिक महाराज जी आज एकमात्र सतगुरु हैं। वे स्वयं कबीर जी के अवतार हैं। वह वही आध्यात्मिक ज्ञान बताते हैं ।और उसी तरह पूजा का उपदेश देते हैं ,जैसे कबीर परमात्मा दिया करते थे इसका प्रमाण वह पवित्र कबीर सागर से भी देते हैं।
कबीर ,अमृतवाणी,बरसे कम्बल भीगे पानी।
मोह नदी विकराल है ,कोई न उतरे पार।सतगुरु केवट साथ देई, हंस होय जम न्यार।
एक विद्वान आचार्य था ,उनको एक दिन कहि जाना हुआ। जाने के लिए रास्ते में नदी पार करना था ,विद्वान नौकाहार के पास पहुंचकर बोला भाई ,मुझे नदी पार कराओ नाविक पार करने लगा ,तभी विद्वान आचार्य नाविक से विद्या के अहंकार से कहा तुम अर्थ शास्त्र जानते हो ,नाविक बोला बाबू में पढ़ा नहीं हूँ ।आचार्य कहा तुम्हारे जीवन का एक हिस्सा डूबा है। कुछ देर होने के बाद फिर पुछा ? तुम विज्ञान जानते हो ,नाविक बोला ,बाबू जी मैं नहीं जानता।आचार्य विद्वान ने कहा तुम्हारा आधा जीवन बेकार है। पुनः कुछ देर बाद नाविक से पुछा तुम इंग्लिश जानते हो ? नाविक बोला बाबू जी मैं स्कूल ही नहीं गया।
आचार्य ने कहा तुम्हारा पूरा ही जीवन डूबा है। इतने में तुफान आ गया, नाव हिलने लगी ,डग मगाने लगी,तब नाविक, आचार्य विद्वान से पुछा बाबू जी आप तैरना जानते हो ? आचार्य घबरा कर बोला मैं तैर नहीं सकता क्योंकि मैं तैरना ही नहीं जानता। नाविक ने कहा तब तो बाबू जी आपका पुरा जीवन ही डूब गया। नाविक ने बांस बाली रस्सी पानी में फेंक कर तैरते हुए नदी पार हो गया ,और आचार्य विद्वान नदी में डूब गया ।इतनी शेखी मारने की क्या ज़रूरत थी ,अपने आप को बचा नहीं सका इसलिए भगवान से डरना चाहिए । अहंकार करने का परिणाम स्वयं को ही भुगतना पड़ता हैं ।
इस मोह रुपी नदी को पार करने के लिए सतगुरु रुपी केवट अथवा नाविक कि बहुत जरुरी है।अगर आचार्य विद्वान अपने विद्या के अहंकार केवट (नाविक) को न दिखाया होता ,तो शायद नदी में डूबने से बच जाता। इसलिए सतगुरु के शरण में अहंकार समर्पण कर ( सार तत्व ) को ग्रहण करना चाहिए । तभी भरे तुफानों से भी जीवन की नैय्या पार लग जाती है।ऐसे ही अल्प ज्ञानी ,विद्वान ,पंडित ,सतगुरु केवट के सामने अहंकार करके मोह रूपी नदी में सार तत्व जाने बिना डूबते जा रहे हैं।सतगुरु जी महाराज के दरबार में अहंकार के लिए कोई स्थान नहीं होता मालिक की रज़ा में रहना चाहिए । https://www.myjiwanyatra.com/
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