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जाग सके तो जाग

गुरुदेव भगवान के चरण कमल में मुझ तुच्छ बुद्धि अज्ञानी प्राणी का कोटि कोटि दन्डवत प्रणाम।मुझ निच दो कौड़ी प्राणी का  गुरु देव जी की प्यारी आत्...

गुरुदेव भगवान के चरण कमल में मुझ तुच्छ बुद्धि अज्ञानी प्राणी का कोटि कोटि दन्डवत प्रणाम।मुझ निच दो कौड़ी प्राणी का 
गुरु देव जी की प्यारी आत्माओं के लिए सन्देश गुरुदेव भगवान के मिशन को सभी भाई बहनों ने गुरु ज्ञान से समझानें  के बहुत ही जरूरत है,उदाहरण—:
एक बाप के दो बेटे है दोनों का कर्म संस्कार व भक्ति संस्कार अलग अलग है ,क्योंकि वर्तमान समय में उनका पिछला संस्कार उनके साथ चलता है , लेकिन बाप के लिए दोनों ही पुत्र एक समान है ओर बाप की दृष्टि दोनों के लिए बाप होने के नाते समान होती हैं ।जैसे दोनों बेटे समझने के लिये एक बेटे को सुपात्र ओर दूसरे को कुपात्र शब्द का उपयोग किया है।फिर भी बाप के लिए दोनों बेटे बुरे नही होते है ,क्योंकि बाप के गुणों में यह गुण विद्यमान होता है। अतः

जब बाप अपने सुपात्र बेटे से तो अपने हित के अच्छे अच्छे और विधिवत कार्य करवाता ही है, पर वक्त समय अनुसार बाप अपने कुपात्र बेटे से भी अपना कार्य सिद्ध करवा लेता है। उस वक्त सुपात्र बेटा यह नही सोच सकता कि यह भाई तो पिताजी के कहे अनुसार चल ही नही रहा था, फिर भी पिताजी ने इससे काम करवा लिया, या करवा रहे हैं। क्योंकि यह बाप के गुणों में होता है, ओर बाप ही समझ सकता है कि मुझे कोन से बेटे से क्या काम करवाना हैं।
कुपात्र बेटा बाप के विचारों को नही समझ पाने के कारण बहुत काम बाप के बताये अनुसार नही, करता ।अपनी मनमानी से करता रहता है, यह सोच कर की पिता जी कुछ काम मुझ से करवा रहे हैं ,तो दूसरा भाई नाराज नही होगा ओर दूसरे भाई को पिताजी का मिशन समझ मे आ गया तो वह दूसरे ना समझ भाई की बुराई नही करता। क्योंकि समझदार बेटा अगर ऐसा करेगा तो भी बाप का ही नाम खराब होगा।बाकी आप समझदार है। समझदार बेटा ना समझ भाई की मनमानी करनी से केवल अपने आप को बचायेगा।सुपात्र बेटा पिता के मिशन को समझकर केवल पिता के बताये अनुसार ही चल रहा होता है।

बाप के लिए दोनों बेटे समान होते हैं ,साथ ही सुपात्र बेटे को कुपात्र बेटे से दूर नही करता, केवल कुपात्र बेटे की मनमानी हरकतों, उसकी मनमानी व उसकी गलत करनी से बचने की सलाह यह कह कर देता है, कि जो शिक्षा दी उसी अनुसार आपको चलना है, बाकी काम मेरा (बाप का) हैं  बाकी आप स्वंम समझदार हैं ।ये पोस्ट वास्तव में उन ज्ञान आधारित आत्माओं के लिए है ,जो ज्ञान को आधार बनाकर गुरूदेव भगवान से सीधे जुड़े हैं , यानी गुरू जी की दी हुई भक्तिविधि में बीच का दलाल कोई नही है, ओर वह आत्माएं ऐसे मनमाना आचरण करने वालो की सुन जरूर लेती हैं पर भक्तिविधि में उनकी मानती भी नही है।
फिर भी कुछ आत्माएं ज्ञान की कमी के कारण व गुरू जी के सत्संग सुनने के अभाव के कारण केवल किसी अन्य पर ही आश्रित होकर ऐसा कर भी रही हैं ।
तो ये पोस्ट उनके लिए गुरू देव जी के आशिर्वाद से सहीं ( वरदान ) साबित होगी। बाकी तो आपजी के ज्ञान आधार, बुद्धि, विवेक पर निर्भर है,फिर भी समझने के लिए गुरू जी ने एक नहीं अनेकों,उदाहरण दिये हैं।

शिकारी आयेगा अपना जाल बिछायेगा दाना डालेगा,
अगर हम दाना नही खायेंगे ,तो जाल में फँसेंगे (कैसे) 
अब हम स्वंम अपने आप को परख ले कि कहीं ऐसा हमारे साथ तो नही हो रहा है। सभी भाई बहन मालिक के मुखकमल से
सुने ध्यान रहे ,जब कभी भी हम या आप किसी अजनबी या बुजुर्ग से एकाएक मिलते हैं , हो सकता है वो शख्स नारायण अर्थात् भगवान के रूप में कोई फरिस्ता निकले,बिल्कुल ऐसा ही तो आज हो रहा है।उन लाखों करोड़ों पुण्यात्माओं के साथ जिन्हें वे शुरू शुरू के दिनों में एक आम सन्त समझते थे ।
आज वो हमारे साथ हैं ,दर असल स्वयं भगवान निकले ,क्योंकि उनके एक आशीर्वाद और मन्त्र से लाखों करोड़ों लोगों की असाध्य से असाध्य बीमारियाँ और समस्याएं चुटकी बजाते ही समाप्त हो रही हैं । जी हाँ दोस्तों ,परम् सन्त तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा है ,कि इस संसार में हम ने सब से आदर सत्कार के साथ मिलना चाहिये। ना जाने किस भेष या रूप में वे स्वयं नारायण अर्थात् भगवान निकले ।अधिक जानकारी के लिये कृपया ज्ञान गंगा और जीने की राह पुस्तक अवश्य पढ़ें ।अपनी जीवन यात्रा को गुरू कृपा से सफल बनाये ।

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