एक दिन संध्या के समय श्री गुरु नानक देव के दर्शन करने के लिए हिमाचल के साकेत शहर का राजा आया। गुरुदर...

एक दिन संध्या के समय श्री गुरु नानक देव के दर्शन करने के लिए हिमाचल के साकेत शहर का राजा आया। गुरुदरबार में कीर्तन चल रहा था ,रागी शबद गा रहे थे। लेख ना मिटिये हे ,सखी जो लिखेया कर्तार। राजा ने प्रश्न किया- महाराज ,अगर किस्मत के लेख मिटते नहीं हैं, तो संगत करने का क्या लाभ है ? श्री गुरु नानक देव जी ने कहा- इसका उत्तर आपको समय आने पर देंगें। अभी आप कुछ आराम कर लीजिये। राजा रात को सोया तो उसे स्वप्न आया, कि उसका एक अति दरिद्र परिवार में जन्म हुआ है ।और उसका जीवन अत्यंत दरिद्रता में बीत रहा है।
वो युवा हुआ, उसका विवाह हुआ और उसे चार संतानें हुईं। उसके जीवन के चालिस वर्ष बीत चुके हैं।एक दिन बच्चों की जिद पर वो एक पीलू के वृक्ष पर चढ़कर उनके लिए पीलू तोड़कर नीचे फेंक रहा हैं।और कुछ खुद भी खा रहा है। एक पके गुच्छे को तोड़ने के लिए वो जैसे ही थोड़ा ऊपर उठा तो उसका पैर फिसल गया, और वो धड़ाम से नीचे गिर गया। राजा यकदम उठ बैठा। भोर हो रही थी और वो दातुन करने लगा, तो मुंह से एक पीलू का बीज निकला। राजा आश्चर्यचकित हो गया।
सुबह जब वो गुरु दरबार में आया, तो श्री गुरू नानक देव जी ने उसे वन विहार करने के लिए चलने को कहा। और श्री गुरु नानक देव जी और राजा वन के लिए चल पड़े। राजा वन में श्री गुरु नानक देव जी से बिछड़ गया, और प्यास से व्याकुल होकर जल की तलाश में एक नगर में जा पहुँचा। कुएं पर पानी भरती औरतों से जब उसने पानी माँगा तो वो भय से चीखने लगीं। राजा अभी हैरान खड़ा ही था कि कुछ बच्चे उससे आकर लिपट गए। कुछ बड़े बजुर्ग और एक औरत उसे हैरानी से देख रहे थे। राजा ने उन्हें थोड़ा गौर से देखा- अरे ये क्या, ये तो वही लोग हैं जिन्हें मैंने सपने में अपने कुटुंबके रूप में देखा था। अरे ये बच्चे भी वही हैं जो सपने में मेरी संतानें थीं। पर इनका अस्तित्व कैसे हो सकता है ? राजा अभी ये सोच ही रहा था, कि सब लोग उसे खींचकर बेटा, बापू और स्वामी कहते हुए लिपट गए।
तभी श्री गुरु नानक देव जी वहां आ गए। राजा ने श्री गुरु नानक देव जी से खुद को बचाने की गुहार लगाई। श्री गुरु नानक देव जी ने उन लोगों से पूछा- आप इन्हें अपने साथ क्यों ले जा रहे हो ? उन्होंने कहा- ये हमारा परिजन है। इसे ईश्वर ने हमारे लिए वापिस भेजा है। अभी कल ही ये बच्चों के लिए पीलू तोड़ने के लिए वृक्ष पर चढ़ा था, और वृक्ष से गिरने से इसकी मौत हो गई थी। कुछ और परिजनों के इंतजार में इसका शरीर वैधराज के पास रखा था। हम उसे ही लेने आज जा रहे थे, कि ये जीवित होकर हमारे सामने आ गया। श्री गुरु नानक देव जी ने कहा भले लोगों ये आपका परिजन नहीं है। आपके परिजन का शरीरवैध के घर में सुरक्षित पड़ा है।
लोग राजा और श्री गुरु अर्जुन देव जी के साथ वैध के घर गए, और हूबहू राजा से मिलती देह देखकर हैरान रह गए।
उन्होंने राजा से माफी मांगी और उन्हें विदा किया ।श्री गुरु नानक देव जी ने राजा से कहा राजन तुमने कहा था ना कि अगर लिखा मिट नहीं सकता है, तो सत्संग का क्या लाभ ? आप जो अभी देख के आ रहे हो, वो आपका आने वाला जन्म था।
जो आपको इस जन्म के कुछ गलत कार्यों के कारण भोगना था, लेकिन साधू जनों की संगत करने के कारण श्री गुरु नानक देव जी ने आपकी दरिद्रता के चालिस साल, एक सपने में ही व्यतीत कर दिए। जिस तरह राजमुद्रा पर अंकित अक्षर उल्टे होते हैं, लेकिन स्याही का संग मिलते ही वो राजपत्रपर सीधे छपते हैं। उसी तरह सत्संग का साथ हमारी मलिन बुद्धि को सीधे राह पर डाल देता है। राजा ये वचन सुनकर, धन्य श्री गुरु नानक देव जी कहते हुए उनके चरणों में नतमस्तक हो गया।
तात्पर्य :- ( यानि भावार्थ ) सतगुरु अपने प्यारे की हर तरह संभाल करते हैं कोई आंच नहींआने देते। शूल की सुई बनाकर कर्म कटवाते हैं ।अच्छे विचारों का आदान-प्रदान और सतपुरुषो से मिलकर जीवन यात्रा को सफल बनाये,और भवसागर से पार उतार देते हैं।
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