एक समय गुरु नानक देव और उनका शिष्य मरदाना अमीना बाद गए। वहां पर एक गरीब किसान लालू नें उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। उसने यथा शक...
एक समय गुरु नानक देव और उनका शिष्य मरदाना अमीना बाद गए। वहां पर एक गरीब किसान लालू नें उन्हें भोजन के लिए आमंत्रित किया। उसने यथा शक्ति रोटी और साग इन दोनों को भोजन के लिए दिए। तभी गाँव के अत्याचारी ज़मींदार मलिक भागु का सेवक वहां आया। उसने कहा मेरे मालिक नें आप को भोजन के लिए आमंत्रित किया है।
बार-बार मिन्नत करने पर गुरु नानक लालू की रोटी साथ ले कर मलिक भागु के घर चले। मलिक भागु नें उनका आदर सत्कार किया। उनके भोजन के लिए उत्तम पकवान भी परोसे। लेकिन उससे रहा नहीं गया। उसने पूछा कि, आप मेरे निमंत्रण पर आने में संकोच क्यों कर रहे थे? उस गरीब किसान की सूखी रोटी में ऐसा क्या स्वाद है जो मेरे पकवान में नहीं।इस बात को को सुन कर गुरु नानक नें एक हाथ में लालू की रोटी ली और, दूसरे हाथ में मलिक भागु की रोटी ली, और दोनों को दबाया. उसी वक्त लालू की रोटी से दूध की धार बहने लगी, जब की मलिक भागु की रोटी से रक्त की धार बह निकली। गुरु नानक देव बोले- भाई लालू के घर की सूखी रोटी में प्रेम और ईमानदारी मिली हुई है। मेहनत से कमाया हुआ पैसा मन को स्कुन और शान्तिपूर्ण जीवन जीने का सही रास्ता सिखाता है ।हक़ हलाल कर कमाई अच्छे विचारों को जन्म देती हैं ।आप की कमाई धन राशी चोरी हेराफेरी की है ।ऐसा कमाया धन ना तो अच्छे विचारों का आदान-प्रदान नहीं हो सकता। धन अप्रमाणिकता से कमाया हुआ है, इसमें मासूम लोगों का रक्त सना हुआ है। जिसका यह प्रमाण है। इसी कारण मैंने लालू के घर भोजन करना पसंद किया। किसी ने सच ही कहा है।
जैसा खाये अन्न वैसा होने मन धन से नहीं मन से अमीर बने। क्योंकि मंदिरों में स्वर्ण कलश भले लगे हो ,लोग नतमस्तक पत्थर की सीढ़ियों पर करते हैं। जोकि पूर्ण परमात्मा सारी यूनिवर्सल का मालिक है लोगो के मन में विराजमान हैं। उन पर विश्वास नहीं यह कैसी बिंडवना है। उस के बिना संसार वे बुनियाद नज़र आता है। मालिक आप ही हो मेरा जहान ,आप के बिना यह जीवन अधूरा नज़र आता है रोम रोम में समाये ,हुये हो आप के विना कुछ नज़र नही आता आप के दर्शन मात्र से जन्मों जन्मों का अंधियारा मिट गया। यह सब देख कर मलिक भागु उनके पैरों में गिर गया।
क्षमायाचना करने लगा अपनी गलती के लिए क्षमा माँगी और, बुरे कर्म त्याग कर अच्छा इन्सान बन गया। पाप और पुन्य हमारे साथ चलते है। दैनिक दिनचर्या मे और अगले जन्म मे भी किये संचित कर्म साथ रहते है। उसी अधार पर हमे जन्म मिलता है।
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