मनुष्य की तृष्णा - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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मनुष्य की तृष्णा

कबीर ,गुरू समर्थ सिर पर खड़े, कहा कमी तोही दास ।                                                  रिद्धि सिद्धि सेवा करै, मुक्ति न ...






कबीर ,गुरू समर्थ सिर पर खड़े, कहा कमी तोही दास ।
                                                 रिद्धि सिद्धि सेवा करै, मुक्ति न छाडै पास ।


भावार्थ - : जब समर्थ गुरु तुम्हारे सिर पर खड़े हैं। अर्थात् सतगुरू का आशीर्वाद युक्त स्नेहमयी हाथ तुम्हारे सिर पर है ,तो ऐसे सेवक को किस वस्तु की कमी होगी।गुरू के चरणों की जो भक्ति भाव से सेवा करता। उस के द्वार पर रिद्धि सिद्धियाँ हाथ जोड़े खड़ी रहती है । कि ,वह संतुष्ट हो ही नहीं सकता। एक के बाद एक इच्छा जागृत हुआ करती है। जिसकी एक कोठी है,वह दूसरी की चाह करेगा।और जिसकी 10 कोठियां है। वह भी यही सोचेगा कि एक और बना लूं। इसी चक्कर में वह मनुष्य जीवन समाप्त करके कुत्ता बनकर उन्हीं कोठियों के बाहर घूमता रहेगा।इसलिए परमात्मा कहते हैं।
रे नर धोखे धोखे लुट गया ,आ गई अंत घड़ी ,
गुरु जी कहते हैं :- बच्चों यह मनुष्य जीवन के साथ छलावा नहीं तो और क्या है। इसलिए काल के जाल को समझो और अपने परमात्मा को पहचानो और चलो सतलोक। साड्डा ( रब_बरवाले_वाला ) है। उन की कृपा से गुप्त नाम का जाप दिया जाता है ।जिस की (शक्ति अपार ) होती हैं ।मेरे सार नाम के सामने काल ब्रह्म ऐसे मुख  मोड़कर भाग जाता है। जैसे गारंटी के मंत्र को सुनकर सर्प अपने फ़न को इकट्ठा करके भाग जाता है।
“कहैं कबीर पुकारिये देय बात लिख लेय ,
एक साहिब की बन्दगी और भूखे को कुछ देय ।”
1.भगवान का भजन ज़रूरी है ।
“राम नाम निज सार है ,राम नाम निज मूल ।
राम नाम सौदा करो ,राम नाम ना भूल “
2. भूखे को भोजन कराना ज़रूरी है ।
“जो अपने सो और के एके पिंढ पिछान
भुखिया भोजन देत है ,पहुँचेंगे प्रवान “
"कहे कबीर पुकारिके दोय बात लिख लेय,
एक साहिब की बन्दगी और भूखे को कुछ दे ।
इस का मतलब है- जैसी पीड़ा हमें होती है।भूख लगने पर ऐसी ही दूसरों को भी होती है।(पीड़ा एक समान ही होती हैं ) ऐसे में किसी भूखे को भोजन खिला दे । तो वह कितना खुश होगा । इसलिए भूखे को भोजन देने वाले कि भक्ति निश्चित ही प्रवान चढेगी यानि (सफल ) है ( GOD_संदेश )

परमात्मा का उद्देश्य हम सभी आत्माओं को इस काल के जाल से निकालना है। क्योंकि काल ने हमारी यहां बहुत दुर्गति कर रखी है। सदगुरुदेव जी कहते हैं। मनुष्य जीवन पा कर तुम अपने आपको इंटेलिजेंट समझते हो। लेकिन सबसे बड़ा धोखा मनुष्य जीवन में होता है। क्योंकि मनुष्य को काल ने इतना बेसब्र बनाया है। इन्सान कभी भी तृप्त नहीं हो सकता।
कोई न कोई दिल दिमाग़ मे कुछ न कुछ चलता रहता है।  पल भर के लिये शांत होना बड़ा मुश्किल लगता है ।राम 
 यूनिवर्सल के मालिक हैं। राम मेरे माता-पिता है  ,राम मेरे स्वामी है, राम मेरे सखा है ,राम दयामय है ,राम मेरे सर्वस्व व्यापी ,राम मेरे सजें ,ख़बें ,राम मेरे पडदे कज्जें ,राम मेरा सदा सहाई ,राम मेरा बकशनहार,राम मेरा घट घट वासी,  नाम जपने से मन के विकार कोसो दूर भाग जाते है। वह सर्वत्र है ,नाम जपने से मंगलों की प्राप्ति होती हैं।अपनी जीवन यात्रा को सफल बनाये आज्ञा में रहें। मेरा चित सदा राम में ही लीन रहे हैं।जिसका असली नाम ( कबीर जी ) हैं जिस को कोई नही जानता मैं उस राम की बात नही कर रही। इतने साल यू ही गँवा दिये,  मन मानी भगती करते रहे ,देखा देखी वह सब व्यर्थ हुई 
जब समय आया,अज्ञानता का पर्दा फाश हुआ। असलीयत का पता चला ,मन के दिल के सारे झंजट समाप्त हो गये ।पूर्ण  परमात्मा कबीर जी महाराज हमारे साथ मौजूद हैं। दिल में दडकन साँसों में हजायो फ़िज़ाओं में अंग संग सदैव उन्हों का ध्यान 
    हैं ।                             
                       













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