ईश्वर की भक्ति - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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ईश्वर की भक्ति

                             रचने वाले की करामात बाँसुरी में कोई गाँठ नहीं होती वह भीतर से खोखली होती है। इस का अर्थ है। अपने अन्दर किसी ...



                            



रचने वाले की करामात बाँसुरी में कोई गाँठ नहीं होती वह भीतर से खोखली होती है। इस का अर्थ है। अपने अन्दर किसी भी तरह की गाँठ को मत पड़ने देना। चाहे कोई तुम्हारे साथ कुछ भी करे। बदले की भावना मत रखना। बिना बजाये बजती नहीं ,

यानि जब तक ना कहा जाये तब तक मत बोलो। बोल बड़े क़ीमती है , बुरा बोलने से अच्छा है शान्त रहो। बाँसुरी जब भी बजती हैं ,मधुर ही बजती हैं ।भगवान देखते हैं, तो उसे उठाकर अपने होंठों से लगा लेते हैं ।हमारे अन्दर भी संसारिक माया ,जाल ,लोभ लालच हंकार , ईर्षा, द्वेष नहीं होना चाहिए। सहज ही परमात्मा को पा सकते हैं। नाम जाप करने से गुरूजी की शरण में आने से आत्मा कभी भ्रमित नहीं होती। तत्व ज्ञान रुपी निर्मल औरा सदैव अंग संग रहता है।

संत जन शास्त्र विधि त्याग कर मनमानी पूजा द्वारा भक्त समाज को मार्ग दर्शन कर रहे होते हैं। तब अपने तत्व ज्ञान का संदेश वाहक बन कर स्वयं प्रभु ही आते हैं। ईश्वर भक्ति का महल बहुत ऊँचा है। यह बहुत दूर से ही दिखाई पड़ता है। जो भी ईश्वर भक्ति में लीन हैं। लोग उस के गुणों की ओर सहज ही आकर्षित होते हैं। इबादत करने वाले को श्रेष्ठ बताया है। चाहे बह किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति हो। कोई भेद भाव नहीं होना चाहिये ।

कबीर खोजी राम का ,गया जो सिघल द्वीप
राम तो घट भीतर रमी रहा जो आवै प्रतीत ।

भावार्थ—कबीर ईश्वर की तलाश में सिंघल द्वीप गये हैं । किन्तु प्रभु तो प्रत्येक धर में, अंतरात्मा में आनंद पूर्वक रमन करते हैं यदि हमें उसकी प्रतीति उपस्थिति का अनुभव हो ।

जबकि सत भक्ति करने वाला व्यक्ति परमात्मा के साथ विमान में बैठ कर अविनाशी स्थान यानी सत लोक चला जाता है। गुरू जी कह रहे हैं। धन्य है ,उन के माता-पिता ,धन्य हो सर्व संगत - वालों जो आप को अमर धन मिल गया। सँभाल कर रखना। संभल कर चलना। गलती करना छोड़ दो, जगत से नाता तोड़ दो ,सुरती नाम से जोड़ दो ।
कबीर साहब की अर्ज़ी है , इस पर ज़ोर दो । परमात्मा की नज़र सभी जगह है ।चाहे सेवा दार हो , सेवा हो हमारी ,गलती हो ,सब पर नज़र नज़र है। कितना सोचते हैं ,मालिक अपने बच्चों के लिये। और हमारे  लिए बड़े दुख की बात है ,हम जीवों की मंद बुद्धि हे मालिक हमें सदबुधि दे। आप सब कुछ करने में समर्थ है। हम भाग्य शाली है ,हम आप के सदैव ऋणी हैं। मालिक अब सही मार्ग मिल गया है। तलाश ख़त्म हुई। अब ओर  कोई इच्छा नहीं, बहुत सुनेहरी  मौक़ा मिला ।
                                                      याद मैं तेरी नीर बहाये ,कौन सी घड़ी किधर ले जाये ।
                                                      इन आखियो के दारे ,ओ मालिक जागे भाग्य हमारे ।
                                                       आप ,मारे या तारे  ,मेहरबान ,हम है दास तुम्हारे ।

हम आप की शरण  में है। हमारी ज़िन्दगी के विधाता आप है। जैसी आप की मर्ज़ी हमें बैसा ही बनाये। मन की अन्तर् आत्मा के मालिक पर  पूर्ण विश्वास है।जो यूनिवर्सल के सारे ब्रह्मांडों का नियंत्रण कर्ता हैं ।उन की अपनी मौज हैं ।
शेष कल—— : 

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