कुछ समय पहले की बात है। एक बहुत धनी आदमी था। एक बार उसके मन में भी किसी संत...
कुछ समय पहले की बात है। एक बहुत धनी आदमी था। एक बार उसके मन में भी किसी संत से ज्ञान लेने की इच्छा हुई। लेकिन उसके मन में धन का बहुत अहंकार था। वो संत के पास गया। तो वे सच्चे संत तुरन्त समझ गये कि इसके मन में धन का बेहद अहंकार है। लेकिन ये बात उन्होंने अपने मन में ही रहने दी। सेठ ने उन सन्त से ज्ञान मंत्र लिया ,और बोला ,महाराज जी मेरे पास बहुत धन है ,किसी चीज की कमी हो तो बोलना ,मेरे योग्य कोई सेवा हो तो बताना ।
संत उसकी इस बात के पीछे छिपे अहंकार को समझ गये ,और उन्होंने उसी पल उसका अहंकार दूर करने की सोची वे कुछ देर सोचते रहे। फ़िर उन्होंने कहा और तो मुझे कोई परेशानी नहीं हैं पर मेरे कपड़ों को सीने के लिए सुई की अक्सर जरूरत पड़ जाती है। अतः यदि तुम मेरा काम करना ही चाहते हो,तो मेरे शरीर त्यागने के बाद जब कभी तुम ऊपर ( मृत्यु के बाद ) आओ तो मेरे लिये अपने साथ एक सुई लेते आना । सेठ को एक सुई का इंतजाम करना बेहद मामूली बात ही लगी। इसलिये वह जोंक में एक दम बोला ठीक है ।महाराज ,लेकिन वो जल्दी में ये बात बोल तो गया, परन्तु फिर उसको ध्यान आया कि ये कैसे हो सकता है ? मरने के बाद मैं भला सुई कैसे ले जा सकता हूँ ,और अगर सुई लेकर भी जाता हूँ ,तो उसे कैसे पता चलेगा, कि मैं आपके लिए सुई लेकर आ गया हूँ, और सबसे बड़ी बात मरने के बाद वो सुई तो वहीँ की वही रह जायेगी।
इस बात के ध्यान में आते ही संत की बात का सही मतलब सेठ की समझ में भली भांति आ गया कि - किसी के मरने के बाद ना तो हम किसी को कुछ दे सकते हैं ।और ना ही वो कुछ ले जा सकते है ।जिस धन पर मैं अभी गर्व कर रहा हूँ. वो सब यहीं का यहीं ही पड़ा रह जायेगा, और मैं एक सुई जैसी मामूली चीज भी अपने साथ नहीं ले जा सकता। तब उसका सारा अभिमान चूर चूर हो गया ।और वो क्षमा माँगता हुआ संत के चरणों में गिर पड़ा।
अच्छी संगत मे आने से विवेक जाग जाता हैं ।एक समय की बात बस स्टैंड पर बैठा एक आदमी बस की इन्तज़ार कर रहा था अभी बस काउंटर पर नहीं लगी थी। मैं बैठा हुआ एक किताब पढ़ रहा था ।मेरे को देख कर कोई 10 ,12 साल की एक बच्ची मेरे पास आकर बोली, बाबू जी पैन ले लो 10 रूपये के चार दे दूँगी। मुझे भूख बहुत लगी है। कुछ खा लूँगी उस के साथ एक छोटा लडका भी था, शायद उस का भाई होगा, मैंने कहा मुझे पैन तो नहीं चाहिए उस का जवाब इतना प्यारा था । उस ने कहा , फिर हम कुछ खायेंगे कैसे ,मैंने कहा मुझे पैन तो नहीं चाहिए पर तुम खाओगे कुछ जरूर, मेरे बैग में बिस्कुट के दो पैकेट थे ,मैंने बैग से बिस्कुट का पैक्ट निकाला एक एक पैक्ट दोनों को पकड़ा दिया, पर मेरी हैरानी की कोई हद ना रही जब उस ने एक पैक्ट वापिस कर के कहा बाबूजी एक ही काफ़ी हैं ,हम बाँट लेंगे ,मैं हैरान हो गया जवाब सुन के मैंने दुबारा कहा रख लो कोई बात नहीं जब उसने एक पैकेट वापिस कर के कहा बाबू जी एक ही पैकेट काफ़ी है।
हम आपस में बाँट लेंगे. मैं हैरान हो गया जबाव सुन के,मैंने दुबारा कहा रख लो कोई बात नहीं फिर आत्मा को झिझोड दिया उस के जवाब में उस से कहा तो फिर आप क्या खाओगे। मैने अंदर ही अंदर अपने आप से कहा ये होते।आत्मा के तृप्त लोग चाहे कपडे मैले ,हो या फट्टे, मन के बहुत अमीर होते हैं। पेट जदो भुखा होवे आत्मा उसी परम पिता का रगं चढ जाता है ,रूह हमेशा ख़ुश रहती है।हमें गहन चिंतन करना चाहिए, अपने आप को पहचानो,हम बहुत खुश क़िस्मत वाले है कि भगवान ने हमें अच्छी सोच दी हैं। अच्छे विचारों को अपनाये किसी का आशीर्वाद ,कब काम कर जाये कोई नहीं जानता ।
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