ब्रह्मण्डों की रचना - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News:

latest

ब्रह्मण्डों की रचना

अनन्त कोटि बाजी तहाँ, रचे सकल ब्रह्मण्ड। गरीबदास मैं क्या करूँ, काल करै जीव खण्ड। भावार्थ : परमात्मा कबीर ...






अनन्त कोटि बाजी तहाँ, रचे सकल ब्रह्मण्ड। गरीबदास मैं क्या करूँ, काल करै जीव खण्ड।

भावार्थ : परमात्मा कबीर जी ने बताया कि हे गरीबदास! मैं इतना समर्थ हूँ किअनन्त जीवों की रचना तथा सब ब्रह्मण्डों की रचना मैंने की है। भोले जीव मुझे ठीक से न पहचानकर मुझे छोड़कर मेरे नाम को खण्ड करके काल के जाल में फँस जाते हैं। अब तुम ही बताओ, मैं क्या करूँ? फिर कहा है जो जन मेरी शरण है,ताका हूँ मैं दास।

गेल-गेल लाग्या फिरूँ, जब तक धरती आकाश। गोता मारूँ स्वर्ग में,
जा पैठूँ पाताल। गरीबदास खोजत फिरूँ, अपने हीरे मोती लाल।

भावार्थ :- परमात्मा कबीर जी ने बताया है कि यदि कोई जीव किसी युग में मेरी दीक्षा ले लेताहै। यदि वह पार नहीं हो पाता है तो उसको किसी मानुष जन्म में ज्ञान सुनाकर शरण में लूँगा। उसके साथ-साथ रहूँगा। मेरी कोशिश रहती है कि किसी प्रकार यह काल जाल से छूटकर सुखसागर सत्यलोक में जाकर सुखी हो जाए। मेरा प्रयत्न तब तक रहता है जब तक धरती और आकाश नष्ट नहीं होते यानि ख़त्म नहीं होते

कबीर, योग (भक्ति) के अंग पाँच हैं, संयम मनन एकान्त।
विषय त्याग नाम रटन, होये मोक्ष निश्चिन्त।

भावार्थ :- भक्ति के चार आवश्यक पहलु हैं। संयम यानि प्रत्येक कार्य में संयम बरतना चाहिए। धन संग्रह करने में, बोलने में, खाने-पीने में, विषय भोगों में संयम रखे यानि भक्त को कम बोलना चाहिए, विषय विकारों का त्याग करना चाहिए। परमात्मा का भजन तथा परमात्मा की वाणी प्रवचनों का मनन करना अनिवार्य है। ऐसे साधना तथा मर्यादा पालन करने से मोक्ष निश्चित प्राप्त होता है।



No comments