प्यार की जीत - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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प्यार की जीत

एक जुलाहा था, बह स्वभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा मिलनसार था .उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था .एक बार कुछ लड़कों को शरारत सुझी ।वे सब ...

एक जुलाहा था, बह स्वभाव से अत्यंत शांत, नम्र तथा मिलनसार था .उसे क्रोध तो कभी आता ही नहीं था .एक बार कुछ लड़कों को शरारत सुझी ।वे सब उस जुलाहे के पास यह सोच कर पहुँचे कि देखें इसे ग़ुस्सा कैसे नहीं आता . उन में एक लड़का धन वान माता पिता का पुत्र था .वहाँ पहुँच कर वह बोला यह साड़ी कितने की दोगे 10 रूपये की  लड़के ने उसे चिढाने के उदेशय से साड़ी के दो टुकड़े कर दिए ।और एक टुकड़ा हाथ में ले कर बोला “मुझे पूरी साड़ी नहीं चाहिए ,आँधी चाहिए । इस का क्या दाम लोगे जुलाहे ने बड़ी शांति  से कहा -  5 रुपये लड़के ने उस टुकड़े के भी दो भाग किये ,ओैर दाम पूछा अब । जुलाहा अब भी शांत था ,उस ने बताया अब ढाई रुपये  लड़का इसी प्रकार साड़ी के टुकड़े करता गया ,अन्त में बोला अब मुझे यह साड़ी नहीं चाहिए ।यह टुकड़े मेरे किस काम के जुलाहे ने शान्त भाव से कहा हां बेटे अब यह टुकड़े तुम्हारे ही क्या किसी के भी काम के नहीं रहे “अब लडके को शरम आई और बोला “ मैंने आप का नुक़सान किया है ।मैं आपकी साड़ी का दाम दे देता हूँ.

जुलाहे ने कहा- जब आपने साड़ी ली ही नहीं, तब मैं आपसे पैसे कैसे ले सकता हूँ . लड़के का अभिमान जागा और वह बोला मैं बहुत अमीर आदमी हूँ. तुम ग़रीब हो. मैं रुपए दे दूँगा, तो मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा, पर तुम यह घाटा कैसे सहोग़े .नुक़सान मैंने किया हैं ,तो घाटा भी मुझे ही पूरा करना चाहिए ना “ जुलाहे ने मुस्कुराते हुए कहा “ तुम यह घाटा पूरा कर ही नहीं सकते । सोचो किसान का कितना श्रम लगा , तब कपास पैदा हुई .

फिर मेरी इस्तरी ने अपनी मेहनत से उस कपास को बुना ,और सूत काता ,फिर मैंने उसे रंगा और बुना. इतनी मेहनत तभी सफल होती जब इसे कोई पहनता , इस से लाभ उठाता ,इस का उपयोग करता पर तुम ने उस को टुकड़े टुकड़े कर डाले ।रूपये से यह घाटा कैसे पुरा हो सकता है ,जुलाहे की आवाज में आकरोंश के स्थान पर अत्यंत दया और सौम्यता थी ।लड़का शर्म से पानी पानी हो गया । उस की आँखें भर आईं और बह जुलाहे के पैरो में गिर गया ।
जुलाहे ने बड़े प्यार से उसे उठाकर उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा-“बेटा यदि मैं तुम्हारे रूपये ले लेता तो उस में मेरा काम चल जाता ।पर तुम्हारी ज़िंदगी का वही हाल होता , जो उस साड़ी का हुआ । उससे कोई भी
लाभ नहीं होता ।साड़ी एक गई , मैं दुसरी बना लूँगा ,पर तुम्हारी ज़िन्दगी एक वार अहंकार में नष्ट हो गई तो दूसरी कहाँ से लाओगे तुम, तुम्हारा पश्चाताप या अपने अभी मान को पहचानाना ही मेरे लिए बहुत मूल्यवान है ।

जुलाहे की ऊँची सोच -समझ और संयम की पराकाष्ठा ने लड़के का जीवन बदल दिया गया । ज़िन्दगी तो सब जीते है पर जीने की सार्थकता तब है ।जब अपने जीवन के आदर्श से किसी की ज़िन्दगी बदल जाए. किसी का जीवन सुधर जाए ।जीवन ऐसा बनाने के लिये हमेशा ......प्रयत्न शील रहे , आम इंसान के बस की बात नहीं ।हज़ारों लाखों में कोई बिरले की सोच ऐसी हो सकती हैं ।इतनी सहनशक्ति ,धन्य हैं मालिक क़ुर्बान जाऊँ ........आप पे
भावार्थ —: अपना जीवन दूसरों के लिये आदर्श हो। वस्तु का मूल्य, भोजन का मूल्य, वो रूपये नहीं ,जो आप उस के बदले देते हैं,मूल्य समझिये ,उस के निर्माण में लगे ,श्रम का भाव ,तथा प्राकृतिक संपदा के आनन्द  में मंगल ही मंगल हैं ।ज़िन्दगी के जीने 
का अन्दाज़ बदलिये ,ताकि देखादेखी दुनियाँ में एकता,प्यार,धैर्य,की मसाल क़ायम रहें ।




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