मेरे पूजनीय,स्मरणीय, वदनीये परम पिता जी के चरणों में कोटी कोटी प्रणाम । कबीर सुख के माथे पत्थर पड़ो ,जो नाम ह्रदय से जाये , बलिहारी वाँ ...
मेरे पूजनीय,स्मरणीय, वदनीये परम पिता जी के चरणों में कोटी कोटी प्रणाम ।
कबीर सुख के माथे पत्थर पड़ो ,जो नाम ह्रदय से जाये ,
बलिहारी वाँ दुख के ,जो पल २ राम रटाये ।
भावार्थ — : हे परमात्मा ,इतना सुख भी न देना कि तुझे मैं भूल जाऊँ ,जिस दुख से परमात्मा की पल पल याद बनी रहे, बैसे दुख सदा बनातें रहना ।मैं बलिहारी जाऊँ ,उस दुख को जिस जिसके कारण मुझे परमात्मा जी की शरण मिलीं रहें ।मृत्यु से पहले मनुष्य जीवन का उद्देश्य पहचाने ।
मौत भूल गया वाबले, तैने अचरज किया सा कौन ,
तन माटी मिल जायेगा ,ज्यों आटे मैं (लोण) यानि (नमक)
भावार्थ — : कबीर परमात्मा जी कहते है , कि हे भोले माना तू अपनी मौत को भूले बैठा है। इस से बड़ा आचार्य और क्या होगा ,यह तेरा सुन्दर शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जायेगा ,ठीक उसी तरह जैसे आटे में लोण ( नमक ) मिल सकता है समय रहते सत शब्द रूपी ज्ञान को समझकर भक्ति आरम्भ करें ।
ज्यूँ पती व्रती से पती से राती ,आन पुरुष ना भावें ,
बसें पीहर मैं सुरत प्रीत में ,यू कोई ध्यान लगावे ।
भावार्थ— :जिस प्रकार एक पतिवरता स्त्री के लिए अपना पति ही सब कुछ हैं. सब बंधनो से मुक्त करने वाले ही पूर्ण परमात्मा है ,सच्चे मन से नाम लिया है। तो कभी कष्ट नही आते सभी आत्माओं में उन्हीं का बास है। जो समर्पण अपने मालिक के प्रति निष्काम भाव से होना चाहिये ।
भावार्थ— :जिस प्रकार एक पतिवरता स्त्री के लिए अपना पति ही सब कुछ हैं. सब बंधनो से मुक्त करने वाले ही पूर्ण परमात्मा है ,सच्चे मन से नाम लिया है। तो कभी कष्ट नही आते सभी आत्माओं में उन्हीं का बास है। जो समर्पण अपने मालिक के प्रति निष्काम भाव से होना चाहिये ।
मालिक को पाने के लिए —: “सतगुरु ज़रूरी है “ बुरे कर्म मिटाने के लिये “सेवा ज़रूरी है “ आत्मा की शांति के लिए
“सिमरन ज़रूरी है “ चौरासी लाख योनियों की मुक्ति के लिए “नाम ज़रूरी है “ यानि शब्द रूपी नाम ज्ञान होना आवश्यक है
जैसे पपीहा पक्षी पृथ्वी पर खड़ कर पानी नहीं पीता चाहे प्यास से मर जाये ।यह विधि का विधान हैं ।जानवर को भी इतना ज्ञान हैं ।वह आकाश से वर्षा का पानी पीता है ।इसी प्रकार शिष्य को अपने गुरू के अतिरिक्त अन्य गुरू से कोई वास्ता नहीं होना चाहिए ।
गरीब ,नित ही जामें नित मरै ,साँसें माही शरीर ।
जिन का सांसा मिट गया, सो पीरन सीर पीर ।
भावार्थ—:जब तक शंका का समाधान नहीं होता तो जीव कभी कोई साधना करता है तो कभी कोई ।जन्म मरण नित (सदा) बना रहता है। जिनको पूर्ण गुरू मिल गया, उन की शंका समाप्त हो गई। वे पीरन ( गुरुओं ) के पीर ( गुरू ) है
यानि व ज्ञानी हैं ।
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