तत्व ज्ञान - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

Page Nav

HIDE

Classic Header

{fbt_classic_header}

Breaking News:

latest

तत्व ज्ञान

एक समय की बात हैं , दो भाई थे। परस्पर बडे़ ही स्नेह तथा सद्भावपूर्वक रहते थे। बड़े भाई कोई वस्तु लाते तो छोटे भाई तथा उसके परिवार के लिए भी अ...




एक समय की बात हैं , दो भाई थे। परस्पर बडे़ ही स्नेह तथा सद्भावपूर्वक रहते थे। बड़े भाई कोई वस्तु लाते तो छोटे भाई तथा उसके परिवार के लिए भी अवश्य ही लाते, छोटा भाई भी सदा उनको आदर तथा सम्मान की दृष्टि से देखता।

पर एक दिन किसी बात पर दोनों में कहा सुनी हो गई। बात बढ़ गई और छोटे भाई ने बडे़ भाई के प्रति अपशब्द कह दिए। बस फिर क्या था ? दोनों के बीच दरार पड़ गई। उस दिन से ही दोनों अलग-अलग रहने लगे और कोई किसी से नहीं बोला। कई वर्ष बीत गये। मार्ग में आमने सामने भी पड़ जाते तो कतरा कर दृष्टि बचा जाते, छोटे भाई की कन्या का विवाह आया। उसने सोचा बडे़ अंत में बडे़ ही हैं, जाकर मना लाना चाहिए।

वह बडे़ भाई के पास गया और पैरों में पड़कर पिछली बातों के लिए क्षमा माँगने लगा। बोला अब चलिए और विवाह कार्य संभालिए। पर बड़ा भाई न पसीजा, चलने से साफ मना कर दिया। छोटे भाई को दुःख हुआ। अब वह इसी चिंता में रहने लगा कि कैसे भाई को मनाकर लिया जाए इधर विवाह के भी बहुत ही थोडे दिन रह गये थे। संबंधी आने लगे थे। किसी ने कहा-उसका बडा भाई एक संत के पास नित्य जाता है। और उनका कहना भी मानता है। छोटा भाई उन संत के पास पहुँचा और पिछली सारी बात बताते हुए अपनी त्रुटि के लिए क्षमा याचना की तथा गहरा पश्चात्ताप व्यक्त किया। और प्रार्थना की कि आप किसी भी प्रकार मेरे भाई को मेरे यही आने के लिए तैयार कर दे।
दूसरे दिन जब बडा़ भाई सत्संग में गया तो संत ने पूछा क्यों तुम्हारे छोटे भाई के यहाँ कन्या का विवाह है ? तुम क्या-क्या काम संभाल रहे हो ? बड़ा भाई बोला—:मैं विवाह में सम्मिलित नहीं हो रहा। कुछ वर्ष पूर्व मेरे छोटे भाई ने मुझे ऐसे कड़वे वचन कहे थे, जो आज भी मेरे हृदय में काँटे की तरह खटक रहे हैं।

संत जी ने कहा—:जब सत्संग समाप्त हो जाए तो जरा मुझसे मिलते जाना। सत्संग समाप्त होने पर वह संत के पास पहुँचा, उन्होंने पूछा: मैंने गत रविवार को जो प्रवचन दिया था उसमें क्या बतलाया था? बडा भाई मौन ? कहा कुछ याद नहीं पडता़ कौन सा विषय था ? संत ने कहा: अच्छी तरह याद करके बताओ। पर प्रयत्न करने पर उसे वह विषय याद न आया।

संत बोले—:देखो मेरी बताई हुई अच्छी बात तो तुम्हें आठ दिन भी याद न रहीं और छोटे भाई के कडवे बोल जो एक वर्ष पहले कहे गये थे, वे तुम्हें अभी तक हृदय में चुभ रहे है। जब तुम अच्छी बातों को याद ही नहीं रख सकते, तब उन्हें जीवन में कैसे उतारोगे और जब जीवन नहीं सुधारा तब सत्सग में आने का लाभ ही क्या रहा ? अतः कल से यहाँ मत आया करो।

अब बडे़ भाई की आँखें खुली। अब उसने आत्म-चिंतन किया और देखा कि मैं वास्तव में ही गलत मार्ग पर हूँ। छोटों की बुराई भूल ही जाना चाहिए। इसी में बडप्पन है। उसने संत के चरणों में सिर नवाते हुए कहा ,मैं समझ गया गुरुदेव।अभी छोटे भाई के पास जाता हूँ, आज मैंने अपना गंतव्य पा लिया।आप ने मुझे सही राह दिखाई मेरा मार्ग दर्शन किया। ज़िन्दगी में परिवर्तन होना अति आवश्यक है ।

No comments