विधि का विधान - 19 - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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विधि का विधान - 19

क्योंकि भाई भी वहाँ पर अकेला ही रहता था. मम्मी का वहाँ जा कर दिल नहीं लगा . क्योंकि वह बच्चों को भी वहाँ पर मिस कर रहे थे . यहाँ का खुला वात...


क्योंकि भाई भी वहाँ पर अकेला ही रहता था. मम्मी का वहाँ जा कर दिल नहीं लगा . क्योंकि वह बच्चों को भी वहाँ पर मिस कर रहे थे . यहाँ का खुला वातावरण , माहौल भी अच्छा था। बाक़ी सब मुक़द्दर की बात थी कि 3 सप्ताह बाद मम्मी की चलते फिरते ही नवरात्रों में मृत्यु हों गई . हमने यह क़भी भी नहीं सोचा था कि इतनी जल्दी पापा के जाने के बाद ,मम्मी भी हमें छोड़ कर चलीं जायेंगी. यह हमारे लिए और भी दुःख की बात थीं. अभी हम पापा के दुःख भुला नहीं पाए थे . कि मम्मी का इतना बड़ा दुःख हमें सहना पड़ा.
धीरे -धीरे ऐसे ही ज़िन्दगी चलती गई. माँ- बाप की अच्छाइयों का हम कभी ऋण नहीं चुका सकते. भगवान से प्रार्थना हैं।  कि हमें अच्छी बुद्धी दें . हम उनकी इच्छाओं को पूरा कर सके . जैसे की गरीबों को दान देंना . कुष्ठ आश्रम में दवाईयो और खाने -पीने का दान करें ,पशु पक्षियों को खाना डाले. धीरे धीरे वक़्त बदलता गया है. फिर शर्मा जी ने इंडिया जाने का प्लान बनाया । वहाँ वह शिरडी साईं बाबा जी के मंदिर गए . उनके मन को बहुत ही सुकून मिला .जहाँ जहाँ इनका दिल किया घूमने को वहाँ ये सब जगह गये..फिर वह अपनी बहन से मिलने होशियारपुर गये. जो वह अपनी यहाँ से पर दवाइयां लेकर गये थे . वो तो वहाँ पर जाकर बंद करवा दी और अपने घर का ही देसी इलाज शुरू कर दिया . जिससे शर्मा जी और भी बीमार हो गये. हमने कहा आप वापिस आ जाये। शर्मा जी की हालत बहुत ख़राब थीं .ईश्वर की अपार कृपा थी कि उन्हें व्हिलचैर पर बिठाकर हवाई जहाज़ में बिठा दिया। जब बच्चे एयरपोर्ट लेने गये तो उन्हें देख कर ख़ुशी तो बहुत हुई। लेकिन हैरान भी बहुत हुए क्योंकि उनकी हालत बहुत ख़राब थी. जो कि इस बात का हमें पता भी नहीं चलने दिया , चलो अपने घर आ गये सब कुछ ठीक हो जायेगा भगवान का लाख लाख शुक्रिया हमारे पास तो हैं. खाना खाया बातें वग़ैरा हुई और सुबह हॉस्पिटल एडिमट हो गये . कुछ ठीक होने लगे यू ही दवाईयाँ बदलने लगे .ऐसे ही चलता रहा . 2 - 3 सप्ताह के बाद शिवरात्रि का बहुत बड़ा पर्व था . उसी दिन ही इनकी मृत्यु हो गई.


हमारे ऊपर तो जैसे दुःखों का पहाड़ ही टूट पड़ा .बच्चे भी अभी छोटे थे. यह सहन करना हमारे लिए बहुत मुश्किल था . उस समय बेटा मेरा 18 साल का था. फिर हम सभी इंडिया गये. इनकी आत्मा की शान्ति के लिए हमने जो भी रीति रिवाज थे। उनके अनुसार तर्पण वग़ैरह किया और1सप्ताह के बाद हम वापिस डेनमार्क आ गये. 2 सप्ताह के बाद दिन दिहाड़े सुबह 10 बजे के क़रीब हमारे घर चोरी हों गई . हम शोप पर थे . शाम को जब हम घर आए सब कुछ बिखरा पड़ा था .जितना भी क़ीमती समान जूलरी ,सोना ,चाँदी, कैश सब चोरी हो गया. लाइफ़ की जीवन यात्रा में मुझे अकेले ही कितना बड़ा संघर्ष करना पड़ा. यह सब जन्मो का ही लेखा जोखा हैं। कि हर इन्सान को निभाना ही पड़ता हैं । 
 शेष कल—:

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