यूरोपियन बच्चे और मातृभाषा´-17 - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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यूरोपियन बच्चे और मातृभाषा´-17

मम्मी ,पापा के आने के बाद हमने बहुत प्रोग्रेस की. मुझे मेरी ड्रीम जॉब मिल गई और BMW कार भी मिल गई. नये काम पर मैं बहुत खुश थीं. मैं मिलियो ...



मम्मी ,पापा के आने के बाद हमने बहुत प्रोग्रेस की. मुझे मेरी ड्रीम जॉब मिल गई और BMW कार भी मिल गई. नये काम पर मैं बहुत खुश थीं. मैं मिलियो मिनिस्ट्री में काम किया .करती थी वहाँ मेरा काम देख कर मेरा शेफ़ बहुत खुश होता था . मैं सब के लिए एक बहुत बड़ी मिसाल थी . क्योंकि मैं काम करने में सबसे आगे थीं . जो भी अलग -2 कंट्रिस से लोग आते थे ।और बहुत बड़ी कोनफ़्रांस , मीटिंगे हुआ करती. वहाँ पर जब किसी को किसी भाषा में प्रोब्लम होती थी ,तो मैं उनकी हेल्प कर देती थी क्यूँकि मुझे हिंदी , पंजाबी, डेनिश,इंग्लिश,उर्दू ,संस्कृत आदि कितनी भाषाए आती थी।
बच्चे भी अपनी -2 पढ़ाई में व्यस्त थे. मम्मी ,पापा ने भी बच्चों की अपनी भाषा सिखाई. उस टाइम हमारे यहाँ नया नया हिंदी zee tv चैनल शुरू हुआ था. उससे भी बच्चों ने बहुत कुछ सिखा, हिंदी फ़िल्में, रामायण , महाभारत सब tv पर आता था . छोटी सी उम्र में ही बच्चों ने रामायण , महाभारत आदि काफ़ी चीजों का ज्ञान हो गया . इंडिया के बच्चों को इतना ज्ञान नहीं था ।जितना कि हमारे बच्चों को ,जब वो इंडिया के बच्चों के साथ बात करते है ,तो इंडिया वाले बहुत खुश होते कि इनके बच्चों को बाहर रहते हुए भी इतनी अच्छी हिंदी ,पंजाबी बोलनी आती हैं ।और काफ़ी धार्मिक विचार वाले हैं. और उन्होंने नानी से देसी महीनो के नाम भी सीखें. ज़ैसे चेत , बैसाख ,जेठ , हाड़, अस्सु, कता, ना ठंडा ना तता, सोण, भाधो , मीं वरादो. धीरे धीरे इन्होंने अपनी ग्रैजूएशन कम्पलिट की .



यहाँ के कल्चर के अनुसार जब बच्चे ग्रैजूएशन पास करते हैं तों उनको टोपियाँ मिलती हैं और सभी स्कूल के बच्चे Mercedes , ट्रक ,कारों में हर किसी के घर जा कर नाश्ता ,लंच, डिनर, पार्टी , डान्स करते हैं और खूब एंजोये करते हैं . तो स्कूल के बच्चे हमारे घर पर भी आए हमने भी बच्चों के खाने पीने का खूब ध्यान रखा और खूब एंजोये किया. और सब अपने अपने घरों मैं चले गये. कुछ समय बाद हमारी बेटी 18 साल की हुई.तो शर्मा जी ने होटल मे पार्टी का प्रबंध किया ।
 बड़ी ख़ुशी मनाई बच्चों ने खूब  इन्जॉय किया ।

शेष कल —:


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