ज़रूरत से ज़्यादा - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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ज़रूरत से ज़्यादा

जर्मनी की बात हैं  ,मैं जर्मनी में रात को होटल में रुकी थी, सुबह दस बजे मैं नाश्ता करने गई ,क्योंकि नाश्ता का समय साढ़े दस बजे तक ही होता है...

जर्मनी की बात हैं  ,मैं जर्मनी में रात को होटल में रुकी थी, सुबह दस बजे मैं नाश्ता करने गई ,क्योंकि नाश्ता का समय साढ़े दस बजे तक ही होता है, इसलिए होटल वालों ने बताया कि जिसे जो कुछ लेना है, वो साढ़े दस बजे तक ले ले। इसके बाद बुफे बंद कर दिया जाएगा। कोई भी आदमी नाश्ता में क्या और कितना खा सकता है यह उस पर निर्भर करता करता हैं ? पर क्योंकि नाश्ताबंदी का फरमान आ चुका था ।इसलिए मैंने देखा कि लोग फटाफट अपनी कुर्सी से उठे और कोई पूरी प्लेट फल भर कर ला रहा है, कोई चार ऑमलेट का ऑर्डर कर रहा है। कोई इडली, डोसा ,उठा लाया तो कोई सैंड विच ,तो कोई आमलेट एक आदमी दो-तीन गिलास जूस के उठा लाया। कोई बहुत से टोस्ट प्लेट में भर लाया ,और साथ में शहद, मक्खन और सरसो की सोऊस भी।
मैं चुपचाप अपनी जगह पर बैठ कर ये सब देखतीं रही ,एक-दो मायें अपने बच्चों के मुंह में खाना ठूंस रही थीं। कह रही थीं कि फटाफट खा लो, अब ये रेस्टोरेंट बंद हो जाएगा। जो लोग होटल में ठहरते हैं, आम तौर पर उनके लिए नाश्ता मुफ्त होता है। मतलब होटल के किराए में सुबह का नाश्ता शामिल होता है। मैंने बहुत बार बहुत से लोगों को देखा है कि वो कोशिश करते हैं कि सुबह देर से नाश्ता करने पहुंचें और थोड़ा अधिक खा लें ताकि दोपहर के खाने का काम भी इसी से चल जाए। कई लोग इसलिए भी अधिक खा लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि मुफ्त का है, तो अधिक ले लेने में कोई बुराई नहीं। कई लोग तो जानते हैं ,कि वो इतना नहीं खा सकते, लेकिन वो सिर्फ इसलिए जुटा लेते हैं कि कहीं कम न पड़ जाए।

दरअसल ,हर व्यक्ति अपनी खुराक पहचानता है। वो जानता है , कि वो इतना ही खा सकता है। पर वो लालच में फंस कर ज़रूरत से अधिक जुटा लेता है। मैं चुपचाप अपनी कुर्सी से सब देखती रही । साढ़े दस बज गए थे। रेस्टोरेन्ट बंद हो चुका था। लोग बैठे थे। टेबल पर खूब सारी चीजें उन्होंने जमा कर ली थीं। पर अब उनसे खाया नहीं जा रहा था। कोई भला दो-तीन गिलास जूस कैसे पी सकता है ? ऊपर से चार ऑमलेट ,बहुत सारे टोस्ट। कई बच्चे मां से झगड़ रहे थे, कि उन्हें अब नहीं खाना। मायें भी खा कर और खिला कर थक चुकी थीं। और अंत में एक-एक कर सभी लोग टेबल पर जमा नाश्ता छोड़ कर धीरे-धीरे बाहर निकलते चले गए। मतलब इतना सारा जूस, फल, अंडा, ब्रेड सब बेकार हो गया। क्या यही है ज़िंदगी हैं ।नहीं 

हम सब अपनी भूख से अधिक जुटाने में लगे हैं। हम सभी जानते हैं ,कि हम इसका इस्तेमाल नही कर पाएंगे। हम जानते हैं कि हमारे बच्चे भी इसे खा नहीं भोग पाएंगे। पर हम अपनी-अपनी टेबल पर ज़रूरत से अधिक जुटाते हैं। जब हम ज़्यादा ले लेते हैं तो हम इतने अज्ञानी नहीं होते कि हम नहीं जानते ,कि हम इन्हें पूरी तरह नहीं खा पाएंगे। हम जानते हैं कि हम इन्हें छोड़ कर दबे पांव शर्माते हुए ,रेस्टोरेन्ट से बाहर निकल जाएंगे, सब कुछ टेबल पर छोड़ कर। चलें जाना हैं। उतना ही जमा कीजिए, जितने की आपको सचमुच ज़रुरत है। ये दुनिया एक रेस्टोरेंट है।कोई इस रेस्टोरेंट में सदा के लिए नहीं बैठ सकता।
कोई इस रेस्टोरेंट में लगातार नहीं खा सकता। सबके खाने की सीमा होती है।रेस्टोरेंट में सबके रहने की भी अवधि तय होती है।
उतना ही लीजिए, जिसमें आपको आनंद आए। उतना ही जुटाइए जितने से आपकी ज़रूरत पूरी हो सके। बाकी सब यहीं छूट जाता है। चाहे नाश्ता हो या कुछ और...हम में से बहुत से लोग संसार रूपी रेस्टोरेंट से बहुत से लोगों को टेबल पर ढेर सारी चीज़ें छोड़ कर जाते हुए देखते हैं। पर फिर भी नहीं समझते कि हमें कितने की ज़रूरत है।जो हम को परमात्मा ने दिया है हमे उसी में खुश रहना चाहिए।
अक्सर,ऐसा नहीं होता ,लोगों की देखा देखी में ग़लत तरीक़े से जी रहें हैं,उस ने ऐसा किया हम क्यों पिछें रहें ,ऐसे ही लोगों ने अपनी सोच बना ली ,सत्य को लोगों ने सदैव छुपाया गया है ,सिंचाई कोसों दूर हैं ।
हम जानते हैं ,कि हम भी सब छोड़ जाएंगे, लेकिन जुटाने के चक्कर में, जो है, हम उसका स्वाद लेना भी छोड़ देते हैं। हमारी ज़िंदगी का भी कोई भरोसा नहीं है ,ज़रूरत से ज़्यादा इच्छा नहीं रखनीं चाहिए ।(मतलब) मालिक जी ने ज़िन्दगी दी हैं ,कल का नहीं आज में जिये। आज को ख़ुशी से जिये । कल किसने देखा हैं। हम सब यहाँ पर एक किराए के घर में रह रहे हैं और यहाँ पर कोई भी चीज स्थिर नहीं हैं ।आज हम है तो कल कोई और इस घर में होगा ।इसलिए किसी भी चीज से प्यार मत करो ,यह सब नाश वान हैं. अपनी आज की लाइफ को ख़ुशी से ज़िये।और खूबसूरत पल का आनन्द ले ।असली जीने का राज अच्छे कर्म करते रहिये ।यूनिवर्सल के मालिक को ना भूलें ।हर पल हमारे साथ हैं ।—: शेष कल 

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