शादी की सुहाग सेज पर बैठी एक स्त्री का पति जब भोजन का थाल लेकर अंदर आया ,तो पूरा कमरा उस स्वादिष्ट भोजन की खुशबू से भर गया ।रोमांचित उस स्त्...
इधर उस स्त्री के दो बच्चे हुए ,जो बहुत ही सुशील और आज्ञाकारी थे। जब वह स्त्री 60 वर्ष की हुई तो वह बेटों को बोली में चारो धाम की यात्रा करना चाहती हूँ ।ताकि तुम्हारे सुखमय जीवन के लिए प्रार्थना कर सकूँ। बेटे तुरंत अपनी माँ को लेकर चारों धाम की यात्रा पर निकल गये। एक जगह तीनों माँ बेटे भोजन के लिए रुके और बेटे भोजन परोस कर मां से खानेकी विनती करने लगे। उसी समय उस स्त्री की नजर सामने एक फटे हाल, भूखे और गंदे से एक वृद्ध पुरुष पर पड़ी जो इस स्त्री के भोजन और बेटों की तरफ बहुत ही कातर नजर से देख रहा था। उस स्त्री को उस पर दया आ गईं ।और बेटों को बोली जाओ पहले उस वृद्ध को नहला ओ और उसे वस्त्र दो फिर हम सब मिलकर भोजन करेंगे। बेटे जब उस वृद्ध को नहला कर कपड़े पहना कर उसे उस स्त्री के सामने लाये तो वह स्त्री आश्चर्य चकित रह गयी ।वह वृद्ध वही था जिससे उसने शादी की सुहागरात को ही divorce ले लिया था। उसने उससे पूछा कि क्या हो गया ,जो तुम्हारी हालत इतनी दयनीय हो गई तो उस वृद्ध ने नजर झुका के कहा कि
सब कुछ होते ही मेरे बच्चे मुझे भोजन नहीं देते थे, मेरा तिरस्कार करते थे, मुझे घर से बाहर निकाल दिया। उस स्त्री ने उस वृद्ध से कहा ,कि इस बात का अंदाजा तो मुझे तुम्हारे साथ सुहागरात को ही लग गया था ।जब तुमने पहले अपनी बूढ़ी माँ को भोजन कराने के बजाय उस स्वादिष्ट भोजन की थाल लेकर मेरे कमरे में आ गए ,और मेरे बार-बार कहने के बावजूद भी आप ने अपनी माँ का तिरस्कार किया। उसी का फल आज आप भोग रहे हैं।
जैसा व्यहवार हम अपने बुजुर्गों के साथ करेंगे। उसी देखा-देखी हमारे बच्चों में भी यह गुण आता है ।कि शायद यही परंपरा होती है।सदैव माँ बाप की सेवा ही हमारा दायित्व बनता है।
जिस घर में माँ बाप हँसते है वही प्रभु बसते हैं ।वृक्ष चाहे कितना भी पुराना हो फल फूल देने के वाबजूद उस की क़ीमत कभी
कम नहीं होती उस की छाया हमेशा बनी रहती है ।
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