सुख सागर - My Jiwan Yatra(Manglesh Kumari )

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सुख सागर

                                  इस दुनिया मे कोई भी जीव अमर नही है। कोई भी मरना नही चाहता। चाहे इंसान हो या पशु पक्षी। इसलिये अनादि काल स...



                                 

इस दुनिया मे कोई भी जीव अमर नही है। कोई भी मरना नही चाहता। चाहे इंसान हो या पशु पक्षी। इसलिये अनादि काल से ही मानव परम शांति, सुख व अमृत्व की खोज में लगा हुआ है। वह अपने सामर्थ्य के अनुसार प्रयत्न करता आ रहा है।लेकिन उसकी यह चाहत कभी पूर्ण नहीं हो पा रही है। हमारा भौतिक शरीर पंचतत्व का बना है। आत्मा अमर अजर है। मगर आत्मा बार बार मनुष्य या पशु पक्षी का शरीर धारण करती है। 
मनुष्य जीवन मे हम परम शांति व सास्वत स्थान को पा सकते है। मगर हमारी कोशिश नाकाम हो रही है। ऐसा इसलिए है ,कि उसे इस चाहत को प्राप्त करने के मार्ग का पूर्ण ज्ञान नहीं है। सभी प्राणी चाहते हैं। कि कोई कार्य न करना पड़े, खाने को स्वादिष्ट भोजन मिले,पहनने को सुन्दर वस्त्र मिलें, रहने को आलीशान भवन हों, घूमने के लिए सुन्दर पार्क हों, मनोरंजन करने के लिए मधुर मधुर संगीत हों, नांचे गाएं, खेलें कूदे, मौज मस्ती मनाएं और कभी बीमार न हों, कभी बूढ़े न हों और कभी मृत्यु न होवे आदि। 
परंतु जिस संसार में हम रह रहे हैं, यहां न तो ऐसा कहीं पर नजर आता है ,और न ही ऐसा संभव है। क्योंकि हम मृत मण्डल मे रह रहे है। यहा पंचतत्व का भौतिक शरीर है। यह शरीर नाशवान है। इस संसार में हर एक वस्तु  नाशवान है।  
                               
यहां ऐसा कुछ भी नहीं है। यहाँ हम सवरने सजने मे लगे रहते है। अपना बुढापा छुपाने के लिये तरह तरह की कोशिश करते है। यहां हम सबको मरना है, सब दुःखी व अशांत हैं। जिस स्थिति को हम यहां प्राप्त करना चाहते हैं, ऐसी स्थिति में हम अपने निज घर सतलोक में रहते थे।
माया से उत्पन्न काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार , राग द्वेष, हर्ष शोक, लाभ हानि, मान बड़ाई रूपी अवगुण हर जीव को परेशान किए हुए हैं। यहां एक जीव दूसरे जीव को मार कर खा जाता है, शोषण करता है, ईज्जत लूट लेता है, धन लूट लेता है, शांति छीन लेता है। यहां पर चारों तरफ आग लगी है। यदि आप शांति से रहना चाहोगे तो दूसरे आपको नहीं रहने देंगे। आपके न चाहते हुए भी चोर चोरी कर ले जाता है, डाकू डाका डाल ले जाता है, दुर्घटना घट जाती है, किसान की फसल खराब हो जाती है, व्यापारी का व्यापार ठप्प हो जाता है। राजा का राज छीन लिया जाता है, स्वस्थ शरीर में बीमारी लग जाती है अर्थात् यहां पर कोई भी वस्तु सुरक्षित नहीं।
राजाओं के राज, ईज्जतदार की ईज्जत, धनवान का धन, ताकतवर की ताकत और यहां तक की हम सभी के शरीर भी अचानक छीन लिए जाते हैं। माता पिता के सामने जवान बेटा बेटी मर जाते हैं, दूध पीते बच्चों को रोते बिलखते छोड़ कर मात पिता मर जाते हैं। जवान बहनें विधवा हो जाती हैं। और पहाड़ से दुःखों को भोगने को मजबूर होते हैं। विचार करें कि क्या यह स्थान रहने के लायक है ? लेकिन हम मजबूरी वश यहां रह रहे हैं। 
क्योंकि इस संसार में  पिंजरे से बाहर निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आता। हमें दूसरों को दुःखी करने की व दुःख सहने की आदत सी बन गई। यदि आप जी को इस लोक में होने वाले दुःखों से बचाव करना है तो यहां  परमेश्वर की शरण लेनी पड़ेगी। क्योंकि यह भगवान ही हमे यहाँ से छुड़वा सकता है। जो परमात्मा के बताए मार्ग पर चलता हैं। वह हमेशा खुश रहेगा । उसे किसी भी चीज का भय नहीं रहेगा ।हम काल के लोक में रह रहे हैं ।यह नहीं चाहता कि पूर्ण परमात्मा कबीर जी महाराज के 
बारे में लोगों को पता चले ,पूर्ण सिंचाई क्या है ,पूरी दुनिया यू ही अज्ञानता वंश उलझी रहे ।मैं लोगों को इतना भ्रम में कर दूँ ,यह सब कुछ भूल जाये ,माया के जाल में यू ही लोग फँसे रहे ।
लेकिन यूनिवर्सल मालिक सदैव अपने बच्चों की रक्षा करता हैं ।शब्द रूपी ज्ञान देकर पल 2 हमें देख रहा हैं ।

मालिक अपनी छत्र छाया में हमारी  रक्षा कर्ता हैं ।

शेष कल—:


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